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________________ २ [ भगवान् श्री कुन्द - कुन्द इस विशेषणका यह भावार्थ सार पदार्थ जानकर चेतन पदाथको नमस्कार प्रमाण रखा। असारपना जानकर अचेतन पदार्थ को नमस्कार निषेधा। आगे कोई वितर्क करेगा कि 'सर्व ही पदार्थ अपने अपने गुण-पर्याय विराजमान है, स्वाधीन है, कोई किसीके आधीन नही; जीव पदार्थका सारपना कैसे घटता है ? उसका समाधान करने के लिये दो विशेषण कहे। और कैसा है 'भाव' ? 'स्वानुभूत्या चकासते, सर्वभावान्तरच्छिदे' [ स्वानुभूत्या ] इस अवसर पर 'स्वानुभूति ' कहनेसे निराकुलत्वलक्षण शुद्धात्मपरिणमनरूप अतीन्द्रिय सुख जानना, उसरूप [ चकासते ] अवस्था है जिसकी। [ सर्वभावान्तरच्छिदे ] ' सर्व भाव' अर्थात् अतीत - अनागत - वर्तमान पर्याय सहित अनन्त गुण विराजमान जितने जीवादि पदार्थ, उनका 'अन्तरछेदी' अर्थात् एक समयमें युगपद् प्रत्यक्षरूपसे जाननशील जो कोई शुद्ध जीववस्तु, उसको मेरा नमस्कार । शुद्ध जीवके सारपना घटता है । सार अर्थात् हितकारी, असार अर्थात् अहितकारी । सो हितकारी सुख जानना, अहितकारी दुःख जानना । कारण कि अजीव पदार्थ- पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, कालके और संसारी जीवके सुख नहीं, ज्ञान भी नहीं, और उनका स्वरूप जाननेपर जाननहारे जीवको भी सुख नहीं, ज्ञान भी नहीं, इसलिए इनके सारपना घटता नहीं। शुद्ध जीवके सुख है, ज्ञान भी है, उसको जाननेपरअनुभवनेपर जाननहारेको सुख है, ज्ञान भी है, इसलिए शुद्ध जीवके सारपना घटता है ।। १ ।। Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates " - समयसार - कलश [ अनुष्टुप ] अनन्तधर्मणस्तत्त्वं पश्यन्ती प्रत्यगात्मनः । अनेकान्तमयी मूर्तिर्नित्यमेव प्रकाशताम्।।२।। [ सोरठा ] देखे पर से भिन्न अगणित गुणमय आतमा। अनेकान्तमयमूर्ति, सदा प्रकाशित ही रहे ।।२।। खंडान्वय सहित अर्थ:- ' नित्यमेव प्रकाशताम् [नित्यं ] सदात्रिकाल [ प्रकाशताम् ] प्रकाशको करो। इतना कहकर नमस्कार किया। वह कौन ? ' अनेकान्तमयी मूर्तिः " [ अनेकान्तमयी ] 'न एकान्तः अनेकान्तः' अनेकान्त अर्थात् स्याद्वाद, उसमयी अर्थात् वही है [मूर्तिः] स्वरूप जिसका, ऐसी है सर्वज्ञकी वाणी अर्थात् दिव्यध्वनि। इस अवसर पर आशंका उपजती है कि कोई जानेगा कि अनेकान्त तो संशय है, संशय मिथ्या है। उसके प्रति ऐसा समाधान करना-अनेकान्त तो संशयको दूरीकरणशील है और वस्तुस्वरूपको साधनशील है । उसका विवरण- जो कोई सत्तास्वरूप वस्तु है वह द्रव्य - गुणात्मक है। उसमें जो सत्ता अभेदरूपसे द्रव्यरूप कहलाती है वही सत्ता भेदरूपसे गुणरूप कहलाती है। इसका नाम अनेकान्त है। वस्तुस्वरूप अनादि-निधन ऐसा ही है। किसीका सहारा नहीं। इसलिये ' अनेकान्त' प्रमाण है। आगे जिस वाणीको नमस्कार किया वह वाणी कैसी है ? प्रत्यगात्मनस्तत्त्वं पश्यन्ती'' [ प्रत्यगात्मनः] सर्वज्ञ वीतराग। उसका विवरण - ' प्रत्यक्' अर्थात् भिन्न भिन्न Please inform us of any errors on rajesh@Atma Dharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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