SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पंडितप्रवर श्री राजमल्लजी कृत ____टीकाके आधुनिक हिन्दी अनुवाद सहित श्रीमद् अमृतचंद्राचार्यदेव विरचित समयसार-कलश 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 -१ जीव अधिकार 卐 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 [अनुष्टुप] नम: समयसाराय स्वानुभूत्या चकासते। चित्स्वभावाय भावाय सर्वभावान्तरच्छिदे।।१।। [दोहा निज अनुभुति से प्रगट, चिद्स्वभाव चिद्रूप। सकल ज्ञेय ज्ञायक नमौं, समयसार सद्रू ।।१।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "भावाय नमः'' [ भावाय] पदार्थ। पदार्थ संज्ञा है सत्त्वस्वरूपकी। उससे यह अर्थ ठहराया--जो कोई शाश्वत वस्तुरूप, उसे मेरा [ नमः] नमस्कार। वह वस्तुरूप कैसा है ? —“चित्स्वभावाय'' [चित् ] ज्ञान-चेतना वही है [स्वभावाय] स्वभाव-सर्वस्व जिसका उसको मेरा नमस्कार। यह विशेषण कहने पर दो समाधान होते हैं-एक तो 'भाव' कहने पर पदार्थ; वे पदार्थ कोई चेतनहैं, कोई अचेतन हैं; उनमें चेतन पदार्थ नमस्कार करने योग्य हैं ऐसा अर्थ उपजता है। दूसरा समाधान ऐसा कि यद्यपि वस्तुका गुण वस्तुमें गर्भित है, वस्तु गुण एक ही सत्त्व है, तथापि भेद उपजाकर कहने योग्य है; विशेषण कहे विना वस्तुका ज्ञान उपजता नहीं। और कैसा है 'भाव'? 'समयसाराय'' यद्यपि समय शद्ध का बहुत अर्थ है तथापि इस अवसर पर समय' शब्दसे सामान्यतया जीवादि सकल पदार्थ जानने। उनमें जो कोई 'सार' है, 'सार' अर्थात उपादेय है जीववस्तु, उसको मेरा नमस्कार। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy