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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २१० समयसार-कलश [भगवान् श्री कुन्द-कुन्द [शार्दूलविक्रीडित] अन्येभ्यो व्यतिरिक्तमात्मनियतं बिभ्रत्पृथग्वस्तुतामादानोज्झनशून्यमेतदमलं ज्ञानं तथावस्थितम्। मध्याद्यन्तविभागमुक्तसहजस्फारप्रभाभासुरः शुद्धज्ञानघनो यथाऽस्य महिमा नित्योदितस्तिष्ठति।। ४३-२३५ ।। [हरिगीत] है अन्य द्रव्यों से पृथक् विरहित ग्रहण अर त्यागसे। यह ज्ञाननिधि निजमें नियत वस्तुत्व को धारण किये।। है आदि-अन्त विभाग विरहित स्फुरित आनन्दघन। हो सहज महिमाप्रभाभास्वर शुद्ध अनुपम ज्ञानघन।।२३५।। खंडान्वय सहित अर्थ:- "एतत् ज्ञानं तथा अवस्थितं यथा अस्य महिमा नित्योदितः तिष्ठति'' [एतत् ज्ञानम्] शुद्ध ज्ञान [तथा अवस्थितम् ] उस प्रकार प्रगट हुआ [ यथा अस्य महिमा] जिस प्रकार शुद्ध ज्ञानका प्रकाश [नित्योदितः तिष्ठति] आगामी अनन्त काल पर्यन्त अविनश्वर जैसा है वैसा ही रहेगा। कैसा है ज्ञान ? "अमलं'' ज्ञानावरण कर्ममलसे रहित है। और कैसा है ज्ञान ? "आदानोज्झनशून्यम्'' [ आदान] परद्रव्यका ग्रहण [ उज्झन] स्वस्वरूपका त्याग उनसे [ शून्यम् ] रहित है। और कैसा है ज्ञान ? "पृथक् वस्तुताम् बिभ्रत्'' सकल परद्रव्यसे भिन्न सत्तारूप है। और कैसा है ? "अन्येभ्यः व्यतिरिक्तम्' कर्मके उदयसे हैं जितने भाव उनसे भिन्न है। और कैसा है ? 'आत्मनियतं'' अपने स्वरूपसे अमिट है। कैसी है ज्ञानकी महिमा ? "मध्याद्यन्तविभागमुक्तसहजस्फारप्रभाभासुरः'' [ मध्य ] वर्तमान [ आदि] पहला [अन्त] आगामी ऐसे [ विभाग] भेदसे [ मुक्त] रहित [ सहज ] स्वभावरूप [स्फारप्रभा] अनन्त ज्ञानशक्तिसे [भासुर: ] साक्षात् प्रकाशमान है। और कैसा है ? "शुद्धज्ञानघनः'' चेतनाका समूह है।। ४३२३५।। [उपजाति] उन्मुक्तमुन्मोच्यमशेषतस्तत् तथात्तमादेयमशेषतस्तत्। यदात्मनः संहृतसर्वशक्तेः पूर्णस्य संधारणमात्मनीह।। ४४-२३६ ।। [हरिगीत] जिनने समेटा स्वयं ही सब शक्तियों को स्वयंमें। सब ओरसे धारण किया हो स्वयं को ही स्वयंमें। मानो उन्हीं ने त्यागने के योग्य जो वह तज दिया। अर जो ग्रहणके योग्य वह सब भी उन्हींने पा लिया।।२३६ ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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