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________________ Version 001: remember to check http://www.Atma Dharma.com for updates [ कलश १०९ ] ज्ञानमात्र मोक्षमार्ग कहनेका कारण- 'कोई आशंका करेगा कि मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र इन तीन का मिला हुआ है, यहाँ ज्ञानमात्र मोक्षमार्ग कहा सो क्यों कहा? उसका समाधान ऐसा हैसम्यग्दर्शन सम्यक्चारित्र सहज ही गर्भित हैं, इसलिये दोष तो कुछ नहीं, गुण है । ' -शुद्धस्वरूप ज्ञानमें [ कलश ११० ] मिथ्यादृष्टि के समान सम्यग्दृष्टिका शुभ क्रियारूप यतिपना भी मोक्षका कारण नहीं है इसका खुलासा ' यहाँ कोई भ्रान्ति करेगा जो मिथ्यादृष्टि यतिपना क्रियारूप है सो बन्धका कारण है, सम्यग्दृष्टि है जो यतिपना शुभ क्रियारूप सो मोक्षका कारण है। कारण कि अनुभव ज्ञान तथा दया व्रत तप संयमरूप क्रिया दोनों मिलकर ज्ञानावरणादि कर्मका क्षय करते हैं। ऐसी प्रतीति कितने ही अज्ञानी जीव करते हैं । वहाँ समाधान ऐसा --- जितनी शुभ-अशुभ क्रिया, बहिर्जल्परूप विकल्प अथवा अंतर्जल्परूप अथवा दोनोंका विचाररूप अथवा शुद्धस्वरूपका विचार इत्यादि समस्त कर्म बन्धका कारण है। ऐसी क्रिया का ऐसा ही स्वभाव है। सम्यग्दृष्टि मिथ्यादृष्टिका ऐसा भेद तो कुछ नहीं । ऐसी करतूति से ऐसा बन्ध है। शुद्धस्वरूप परिणमनमात्र से मोक्ष है । यद्यपि एक ही काल में सम्यग्दृष्टि जीव के शुद्ध ज्ञान भी है, क्रियारूप परिणाम भी हैं । तथापि क्रियारूप है जो परिणाम उससे अकेला बन्ध होता है। ऐसा वस्तुका स्वरूप, सहारा किसका । उसी समय शुद्धस्वरूप अनुभव ज्ञान भी है। उसी समय ज्ञानसे कर्मक्षय होता है, एक अंशमात्र भी बन्ध नहीं होता है। वस्तुका ऐसा ही स्वरूप है । ' [ कलश ११२ ] समस्त क्रियामें ममत्वके त्यागके उपायका कथन -- ' जितनी क्रिया है वह सब मोक्षमार्ग नहीं है ऐसा जान समस्त क्रिया में ममत्वका त्याग कर शुद्ध ज्ञान मोक्षमार्ग है ऐसा सिद्धान्त सिद्ध हुआ । ' [ कलश ११४ ] स्वभावप्राप्ति और विभावत्याग का एक ही काल है 'जिस काल शुद्ध चैतन्य वस्तुकी प्राप्ति होती है उसी काल मिथ्यात्व - राग-द्वेषरूप जीवका परिणाम मिटता है, इसलिये एक ही काल है, समयका अन्तर नहीं है।' [ कलश ११५ ] सम्यग्दृष्टि जीवके द्रव्यास्रव और भावास्रवसे रहित होनेके कारणका निर्देश- 'आस्रव दो प्रकारका है । विवरण --- एक द्राव्यास्रव है। एक भावास्रव है । द्रव्यास्रव कहने पर कर्मरूप बैठे हैं आत्मामें प्रदेशों में पुद्गलपिण्ड, ऐसे द्रव्यास्रवसे जीव स्वभाव ही से रहित है । यद्यपि जीव के प्रदेश, कर्मपुद्गलपिण्ड के प्रदेश एक ही क्षेत्र में रहते हैं तथापि परस्पर एक द्रव्यरूप नहीं होते, अपने अपने द्रव्य - गुण - पर्याय रूप रहते हैं। इसलिये पुद्गलपिण्ड से जीव भिन्न है । Please inform us of any errors on rajesh@Atma Dharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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