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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १८४ समयसार-कलश [भगवान् श्री कुन्द-कुन्द [ मालिनी] क्षणिकमिदमिहैक: कल्पयित्वात्मतत्त्वं निजमनसि विधत्ते कर्तृभोक्त्रोविभेदम्। अपहरति विमोहं तस्य नित्यामृतौघैः स्वयमयमभिषिञ्चश्चिच्चमत्कार एव।।१४-२०६ ।। [रोला] जो कर्ता वह नहीं भोगता इस जगती में, ऐसा कहते कोई आतमा क्षणिक मानकर। नित्यरूपसे सदा प्रकाशित स्वयं आतमा, मानो उनका मोह निवारण स्वयं कर रहा।।२०६ ।। खंडान्वय सहित अर्थ:-- "इह एक: निजमनसि कर्तृभोक्त्रोः विभेदम् विधत्ते'' [इह ] साम्प्रत विद्यमान है ऐसा [एक:] बौद्धमतको माननेवाला कोई जीव [निजमनसि] अपने ज्ञानमें [ कर्तृभोक्त्रोः ] कर्तापना-भोक्तापनामें [ विभेदम् विधत्ते] भेद करता है। भावार्थ इस प्रकार है कि वह ऐसा कहता है कि क्रियाका कर्ता कोई अन्य है, भोक्ता कोई अन्य है। ऐसा क्यों मानता है ? ''इदम् आत्मतत्त्वं क्षणिकम् कल्पयित्वा'' [इदम् आत्मतत्त्वं] अनादिनिधन है जो चैतन्यस्वरूप जीवद्रव्य, उसको [क्षणिकम् कल्पयित्वा] जिस प्रकार अपने नेत्ररोगके कारण कोई श्वेत शंखको पीला देखता है, उसी प्रकार अनादिनिधन जीवद्रव्य को मिथ्या भ्रान्तिके कारण ऐसा मानता है कि एक समयमात्रमें पूर्वका जीव मूलसे विनश जाता है, अन्य नया जीव मूलसे उपज आता है। ऐसा मानता हुआ मानता है कि क्रियाका कर्ता अन्य कोई जीव है, भोक्ता अन्य कोई जीव है। ऐसा अभिप्राय मिथ्यात्वका मूल है। इसलिए ऐसे जीवको समझाते हैं - "अयम् चिच्चमत्कारः तस्य विमोहं अपहरति'' [अयम् चिच्चमत्कार:] किसी जीवने बाल्यावस्थामें किसी नगरको देखा था। कुछ काल जानेपर और तरुण अवस्था आनेपर उसी नगरको देखता है। देखते हुए ऐसा ज्ञान उत्पन्न होता है कि वही यह नगर है जिस नगरको मैने बालकपनमें देखा था। ऐसा है जो अतीत अनागत वर्तमान शाश्वत ज्ञानमात्र वस्तु वह [तस्य विमोहं अपहरति] क्षणिकवादीके मिथ्यात्वको दूर करता है। भावार्थ इस प्रकार है कि जो जीवतत्त्व क्षणविनश्वर होता तो पूर्व ज्ञान को लेकर जो वर्तमान ज्ञान होता है वह किसको होवे। इसलिए ‘जीवद्रव्य सदा शाश्वत है' ऐसा कहनेसे क्षणिकवादी प्रतिबुद्ध होता है। कैसी है जीववस्तु ? 'नित्यामृतौघैः स्वयम् अभिषिञ्चत्'' [नित्य] सदाकाल अविनश्वरपनारूप जो [अमृत] जीवद्रव्यका जीवनमूल उसके [ ओघैः] समूह द्वारा [ स्वयम् अभिषिञ्चन् ] अपनी शक्तिसे आप पुष्ट होता हुआ। "एव'' निश्चयसे ऐसा ही जानियेगा, अन्यथा नहीं।। १४-२०६ ।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
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