SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates सर्वविशुद्धज्ञान - अधिकार [ वसन्ततिलका ] ज्ञानी करोति न न वेदयते च कर्म जानाति केवलमयं किल तत्स्वभावम्। जानन्परं करणवेदनयोरभावा च्छुद्धस्वभावनियतः स हि मुक्त एव ।। ६-९९८ ।। कहान जैन शास्त्रमाला ] "" [ सोरठा ] निश्चल शुद्धस्वभाव, ज्ञानी करे न भोगवे । जाने कर्म स्वभाव, इस कारण वह मुक्त है । । ९९८ ।। खंडान्वय सहित अर्थः- ज्ञानी कर्म न करोति च न वेदयते '' [ ज्ञानी ] सम्यग्दृष्टि जीव [ कर्म न करोति ] रागादि अशुद्ध परिणामोंका कर्ता नहीं है । [च] और [ न वेदयते ] सुख दुःखसे लेकर अशुद्ध परिणामोंका भोक्ता नहीं है । कैसा है सम्यग्दृष्टि जीव?'' किल अयं तत्स्वभावम् इति केवलम् जानाति [ किल ] निश्चयसे [ अयं ] जो शरीर भोग रागादि सुख दुःख इत्यादि समस्त [ तत्स्वभावम् ] कर्मका उदय हैं, जीवका स्वरूप नहीं है [ इति केवलम् जानाति ] ऐसा सम्यग्दृष्टि जीव जानता है, परन्तु स्वामित्वरूप नहीं परिणमता I 'हि सः मुक्तः एव '' [हि ] तिस कारणसे [स:] सम्यग्दृष्टि जीव [ मुक्त: एव ] जैसे निर्विकार सिद्ध हैं वैसा है। कैसा है सम्यग्दृष्टि जीव ? .. परं जानन्'' जितनी है परद्रव्यकी सामग्री उसका ज्ञायकमात्र है। मिथ्यादृष्टिके समान स्वामीरूप नहीं है। और कैसा है ? ' शुद्धस्वभावनियत: '' [ शुद्धस्वभाव ] शुद्ध चैतन्यवस्तुमें [ नियतः ] आस्वादरूप मग्न है। किस कारणसे ? ' ' करणवेदनयोः अभावात् '' [करण ] कर्मका करना [वेदन ] कर्मका भोग ऐसे भाव [ अभावात् ] सम्यग्दृष्टि जीवके मिटे हैं इस कारण । भावार्थ इस प्रकार है कि मिथ्यात्व संसार है, मिथ्यात्वके मिटनेपर जीव सिद्धसदृश है ।। ६-१९८ ।। "" [ अनुष्टुप ] ये तु कर्तारमात्मानं पश्यन्ति तमसा तताः। समान्यजनवत्तेषां न मोक्षोऽपि मुमुक्षताम् ।। ७-१९९ ।। [ हरिगीत ] निज अतमा ही करे सब कुछ मानते अज्ञान से। हों यद्यपि वे मुमुक्षु पर रहित आतमज्ञान से ।। अध्ययन करें चरित्र पालें और भक्ति करें पर । लौकिकजनों वत उन्हें भी तो मुक्ति की प्राप्ति न हो । । १९९ ।। १७७ खंडान्वय सहित अर्थ:-'' तेषां मोक्ष: न ' [ तेषां ] ऐसे मिथ्यादृष्टि जीवोंको [ न मोक्षः ] कर्मका विनाश, शुद्ध स्वरूपकी प्राप्ति नहीं है। कैसे हैं वे जीव?'' मुमुक्षताम् Please inform us of any errors on rajesh@Atma Dharma.com
SR No.008397
Book TitleSamaysara Kalash
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
Author
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy