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________________ १० उपयोग वीतराग-विज्ञान भाग -३ ज्ञानचन्द - जिसमें सामान्य का प्रतिभास (निराकार झलक) हो, उसको दर्शनोपयोग कहते हैं और जिसमें स्व-पर पदार्थों का भिन्नतापूर्वक अवभासन हो, उस उपयोग को ज्ञानोपयोग कहते हैं। दर्शनलाल-सब जीवों का ज्ञान एक सरीखा तो नहीं होता? ज्ञानचन्द - हाँ, शक्ति अपेक्षा तो सब में ज्ञान गुण एक समान ही है; किन्तु वर्तमान की अपेक्षा ज्ञान के मुख्य रूप से ८ भेद होते हैं : (१) मतिज्ञान (२) श्रुतज्ञान (३) अवधिज्ञान (४) मन:पर्ययज्ञान (५) केवलज्ञान (६) कुमति (७) कुश्रुत (८) कुअवधि दर्शनलाल - मतिज्ञान, श्रुतज्ञान आदि से क्या तात्पर्य ? ज्ञानचन्द - पराश्रय की बुद्धि छोड़कर दर्शनोपयोगपूर्वक स्वसन्मुखता से प्रकट होनेवाले निज आत्मा के ज्ञान को मतिज्ञान कहते हैं । अथवा इन्द्रियाँ और मन हैं निमित्त जिसमें, उस ज्ञान को मतिज्ञान कहते हैं और मतिज्ञान के द्वारा जाने हुए पदार्थ के संबंध से अन्य पदार्थ को जाननेवाले ज्ञान को श्रुतज्ञान कहते हैं। ___ इन्द्रियों और मन के निमित्त बिना तथा द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव की मर्यादा लिए हुए रूपीपदार्थ के स्पष्ट ज्ञान को अवधिज्ञान कहते हैं। दर्शनलाल- और मन:पर्ययज्ञान ? ज्ञानचन्द - सुनो, सब बताता हूँ। ज्ञानी मुनिराज को इन्द्रियों और मन के निमित्त बिना द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव की मर्यादा लिए हुए दूसरे के मन में स्थित रूपीविषय के स्पष्ट ज्ञान होने को मन:पर्ययज्ञान कहते हैं। तथा जो तीन लोक तथा तीन कालवर्ती सर्व पदार्थों व उनके समस्त गुण व समस्त पर्यायों को तथा अपेक्षित धर्मों को प्रत्येक समय में स्पष्ट और एक साथ जानता है, ऐसे पूर्ण ज्ञान को केवलज्ञान कहते हैं। दर्शनलाल - ये तो ठीक ‘पर कुमति आदि भी कोई ज्ञान हैं? ज्ञानचन्द - आत्मस्वरूप न जाननेवाले मिथ्यादृष्टि के जो मति, श्रुत, अवधिज्ञान होते हैं - वे कुमति, कुश्रुत व कुअवधि कहलाते हैं; क्योंकि मूलतत्त्व में विपरीत श्रद्धा होने से उसका ज्ञान मिथ्या होता है, भले ही उसके अप्रयोजनभूत लौकिक ज्ञान यथार्थ हो, किन्तु प्रयोजनभूत तत्त्वज्ञान यथार्थ न होने से उसके वे सब ज्ञान मिथ्या ही हैं। दर्शनलाल - क्या दर्शनोपयोग के भी भेद होते हैं ? ज्ञानचन्द - हाँ ! दर्शनोपयोग चार प्रकार का होता है :(१) चक्षुदर्शन (२) अचक्षुदर्शन (४) अवधिदर्शन (४) केवलदर्शन दर्शनलाल - चक्षुदर्शन तो ठीक है अर्थात् आँख से देखना, परन्तु अचक्षुदर्शन क्या है? ज्ञानचन्द - नहीं भाई ! ऐसा नहीं है। चक्षु इन्द्रिय जिसमें निमित्त हो, उस मतिज्ञान से पहले जो सामान्य प्रतिभास या अवलोकन होता है, उसको चक्षुदर्शन कहते हैं। और चक्षुइन्द्रिय को छोड़कर शेष चार इन्द्रियाँ और मन जिसमें निमित्त हों - ऐसे मतिज्ञान से पहले होनेवाले सामान्य प्रतिभास को अचक्षुदर्शन कहते हैं। दर्शनलाल - बहुत ठीक, और अवधिदर्शन ? ज्ञानचन्द - इसीप्रकार अवधिज्ञान से पहले होनेवाले सामान्य प्रतिभास को अवधिदर्शन कहते हैं, परन्तु केवलदर्शन में कुछ विशेषता है। दर्शनलाल - वह क्या ? ज्ञानचन्द - केवलज्ञान के साथ होनेवाले सामान्य प्रतिभास व अवलोकन को केवलदर्शन कहते हैं। केवलदर्शन व केवलज्ञान में कालभेद नहीं होता। दर्शनलाल - वाह भाई! खूब समझाया ! धन्यवाद !! प्रश्न - १. उपयोग किसे कहते हैं ? वह कितने प्रकार का होता है ? भेद-प्रभेद सहित गिनाइए? २. दर्शनोपयोग और ज्ञानोपयोग में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए? ३. निम्नांकित में से किन्हीं दो की परिभाषाएँ दीजिये : मतिज्ञान, केवलज्ञान, चक्षुदर्शन, केवलदर्शन? ४. आचार्य उमास्वामी के व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर प्रकाश डालिए?
SR No.008388
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size131 KB
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