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________________ वीतराग-विज्ञान भाग -3 समयसार स्तुति ___ हे समयसार ! तू निश्चयनय का ग्रन्थ है, अत: व्यवहार के समस्त भंगों को भेदनेवाला है और तू ही ज्ञानभाव और कर्मोदयजन्य औपाधिक भावों की संधि को भेदनेवाली प्रज्ञारूपी छैनी है। मुक्ति के मार्ग के साधकों का तू सच्चा साथी है, जगत का सूर्य है और तू ही सच्चा महावीर का संदेश है। संसार दुःख से दुःखी हृदयों को विश्राम देनेवाले ग्रन्थराज ! मानो तुम मुक्ति के मार्ग ही हो! हे समयसार ! तुम्हें सुनने से कर्म-रस (अनुभाग बंध) ढीला पड़ जाता है। तुम्हें जान लेने पर ज्ञानी का हृदय जान लिया जाता है। तुम्हारे प्रति रुचि उत्पन्न होते ही सांसारिक विषय-भोगों की रुचि समाप्त हो जाती है। जिस पर तुम रीझ जाते हो, उस पर उसका सम्पूर्ण ज्ञेयों को जानने के स्वभाववाला आत्मा रीझ जाता है। तात्पर्य यह है कि सकल ज्ञेयों का ज्ञायक आत्मा अनुभूति में प्रकट हो जाता है। ___ यदि तप्त स्वर्ण के पत्र बनाये जावें और उन पर रत्नों के अक्षरों से कुन्दकुन्द के सूत्रों को लिखा जाये तो भी कुन्दकुन्द के सूत्रों का मूल्य नहीं आंका जा सकता है। हा प्रश्न - 1. समयसार-स्तुति का सारांश अपने शब्दों में लिखिये। 2. उपर्युक्त स्तुति में जो छन्द तुम्हें सबसे अच्छा लगा हो, उसे अर्थ सहित लिखिये। शास्त्रों के माध्यम से हम हजारों वर्ष पुराने आचार्यों के सीधे सम्पर्क में आते हैं। हमें उनके अनुभव का लाभ मिलता है। लोकालोक का प्रत्यक्ष ज्ञान तो हमें परमात्मा बनने पर ही प्राप्त हो सकेगा, किन्तु परोक्षरूप से वह हमें जिनवाणी द्वारा प्राप्त हो जाता है। सर्वज्ञ भगवान के इस क्षेत्र-काल में अभाव होने एवं आत्मज्ञानियों की विरलता होने से एक जिनवाणी की ही शरण है। 25
SR No.008388
Book TitleVitrag Vigyana Pathmala 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages25
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size131 KB
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