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________________ ४२ पंच भाव तत्वज्ञान पाठमाला, भाग-१ ५. औपशमिक भाव के बिना कोई धर्म की शुरूआत वाले नहीं हैं। जिज्ञासु - कौनसा भाव कितने काल तक ठहरता है ? प्रवचनकार - सुनो ! मैं प्रत्येक का काल बताता हूँ १. औपशमिक भाव सादिसांत होता है, क्योंकि इसका काल ही अंतर्मुहूर्त मात्र है। २. क्षायिक भाव सादिअनंत है और संसार में रहने की अपेक्षा से उत्कृष्ट काल ३३ सागर से कुछ अधिक काल कहा है। ३. क्षायोपशमिक भाव अनादिसांत - ज्ञान, दर्शन, वीर्य की अपेक्षा से। सादिसांत - धर्म की प्रगट पर्याय अपेक्षा से उत्कृष्ट ६६ सागर से कुछ अधिक काल। ४. औदयिक भाव अनादिसांत - भव्य जीवों की अपेक्षा। अनादिअनंत - अभव्य जीवों तथा दूरांदूरभव्य जीवों की अपेक्षा से। ५. पारिणामिक भाव- अनादिअनंत। जिज्ञासु - यह तो समझ में आ गया। अब कृपा करके यह बताइये कि इन भावों में से ग्रहण करने योग्य व त्याग करने योग्य कौन-कौन से भाव हैं ? क्योंकि कहा है - "बिने जाने तैं दोष-गुणन को, कैसे तजिए गहिए।" प्रवचनकार - यह तुमने बहुत अच्छा पूछा; क्योंकि हेय, ज्ञेय, उपादेय को जाने बिना कोई जानकारी पूरी नहीं होती है। १. औदयिक भाव हेय, औपशमिक भाव साधक तथा दशा का क्षायोपशमिक भाव और क्षायिक भाव प्रगट करने की अपेक्षा उपादेय और पारिणामिक भाव आश्रय करने की अपेक्षा परम उपादेय है। २. औदयिक भाव विकार है, साधक के लिए हेय है, आश्रय करने योग्य नहीं है। औपशमिक भाव साधक का क्षायोपशमिक भाव सादिसांत है व एक समय की पर्याय हैं तथा क्षायिकभाव सादिअनंत है, पर्यायरूप है। अतः ये भी आश्रय करने योग्य नहीं हैं। पारिणामिक भाव जो कि अनादिअनंत है, वह एक ही आश्रय करने योग्य है। सारांश यह है कि जिनको धर्म करना हो, सुखी होना हो, उन्हें औदयिकादि चारों भावों पर से दृष्टि हटाकर मात्र परम पारिणामिक भावरूप त्रिकाली भूतार्थ ज्ञायकस्वभाव का ही आश्रय लेना चाहिए: क्योंकि उसके आश्रय से ही धर्म की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि और पूर्णता होती है। प्रश्न - १. जीव के असाधारण भाव कितने हैं व कौन-कौनसे ? नाम सहित लिखिए। २. सबसे अधिक संख्या कौनसे भाववाले जीवों की है और क्यों ? ३. क्षायोपशमिक भाव कितने प्रकार के हैं ? नाम सहित लिखिए। ४. क्या अभव्यों के औपशमिक भाव हो सकते हैं ? ५. सिद्धों के कितने भाव हैं और कौन-कौन से? ६. पाँचों भावों में हेय, ज्ञेय और उपादेय बताइये । ७. आचार्य उमास्वामी के व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर प्रकाश डालिए। १. पारिणामिक भाव को छोड़कर सभी भाव पर्यायरूप होने सादि सांत ही होते हैं, किन्तु पर्यायों के प्रवाहरूप क्रम की एकरूपता को लक्ष्य में रखकर यहाँ क्षायिकभाव को सादिअनंत कहा है। यद्यपि औदयिकभाव प्रवाहरूप से अनादि का होता है और धर्मी जीव को उसका अंत भी आ जाता है। उस अपेक्षा से अनादिसांत कहा है, फिर भी उसका प्रवाह किसी जीव को एकरूप नहीं रखता है। उसी कारण औदयिक भाव को सादिसांत भी कहा है। अभव्य जैसे भव्यों को दूरान्दूरभव्य कहते हैं। (22) DIShrutesh5..jshnuteshihonkathonkakirale ThivapanPatmalaPart-1
SR No.008382
Book TitleTattvagyan Pathmala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size166 KB
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