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________________ ४५८ समयसार ( हरिगीत ) यह आतमा हो नष्ट कुछ पर्याय से कुछ से नहीं। जो भोगता वह करे अथवा अन्य यह एकान्त ना ।।३४५।। केहिंचि दुपज्जएहिं विंणस्सए णेव केहिंचि दुजीवो। जम्हा तम्हा वेददि सो वा अण्णो व णेयंतो ।।३४६।। जो चेव कुणदि सो चियण वेदए जस्स एस सिद्धंतो। सो जीवो णादव्वो मिच्छादिट्ठी अणारिहदो।।३४७।। अण्णो करेदि अण्णो परिभुजदि जस्स एस सिद्धंतो। सो जीवो णादव्वो मिच्छादिट्ठी अणारिहदो ॥३४८।। कैश्चित्तु पर्यायैर्विनश्यति नैव कैश्चित्तु जीवः। यस्मात्तस्मात्करोति स वा अन्यो वा नैकांतः ।।३४५।। कैश्चित्तु पर्यायैर्विनश्यति नैव कैश्चित्तु जीवः । यस्मात्तस्माद्वेदयते स वा अन्यो वा नैकांतः ।।३४६।। यश्चैव करोति स चैव य वेदयते यस्य एष सिद्धांतः। स जीवो ज्ञातव्यो मिथ्यादृष्टिरनार्हतः ।।३४७।। अन्यः करोत्यन्यः परिभुक्ते यस्य एष सिद्धांतः। स जीवो ज्ञातव्यो मिथ्यादृष्टिरनार्हतः ।।३४८।। यह आतमा हो नष्ट कुछ पर्याय से कुछ से नहीं। जो करे भोगे वही अथवा अन्य यह एकान्त ना ।।३४६।। जो करे, भोगे नहीं वह; सिद्धान्त यह जिस जीव का। वह जीव मिथ्यादृष्टि आर्हतमत विरोधी जानना ।।३४७।। कोई करे कोई भरे यह मान्यता जिस जीव की। वह जीव मिथ्यादृष्टि आर्हतमत विरोधी जानना ।।३४८।। क्योंकि जीव कितनी ही पर्यायों से नष्ट होता है और कितनी ही पर्यायों से नष्ट नहीं होता है; इसलिए जो भोगता है, वही करता है या अन्य ही करता है - ऐसा एकान्त नहीं है। क्योंकि जीव कितनी ही पर्यायों से नष्ट होता है और कितनी ही पर्यायों से नष्ट नहीं होता है; इसलिए जो करता है, वही भोगता है अथवा अन्य ही भोगता है - ऐसा एकान्त नहीं है। जो करता है, वह नहीं भोगता - ऐसा जिसका सिद्धान्त है; वह जीव मिथ्यादृष्टि है और अरहन्त के मत के बाहर है, अनार्हत मतवाला है - ऐसा जानना चाहिए। अन्य करता है और उससे अन्य भोगता है - ऐसा जिसका सिद्धान्त है; वह जीव मिथ्यादृष्टि है और अरहन्त के मत के बाहर है, अनाहत मतवाला है। - ऐसा जानना चाहिए। उक्त चारों गाथाओं का तात्पर्य यह है कि जो करता है, वही भोगता है - ऐसा एकान्त भी नहीं
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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