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________________ पुण्यपापाधिकार २३१ शुभमशुभं च कर्माविशेषेणैव पुरुषं बध्नाति बंधत्वाविशेषात् कांचनकालायसनिगलवत् । अथोभयं कर्म प्रतिषेधयति । कुशीलशुभाशुभकर्मभ्यां सह रागसंसर्गौ प्रतिषिद्धौ बन्धहेतुत्वात् कुशीलमनोरमामनोरमकरेणुकुट्टनीरागसंसर्गवत्।। ___ अथोभयं कर्म प्रतिषेध्यं स्वयं दृष्टान्तेन समर्थयते - यथा खलु कुशलः कश्चिद्वनहस्ती स्वस्य बंधाय उपसर्पन्तीं चटुलमुखीं मनोरमाममनोरमांवा करेणुकुट्टनीं तत्त्वत: कुत्सितशीलां विज्ञाय तया सह रागसंसर्गौ प्रतिषेधयति, तथा किलात्माऽरागो ज्ञानी स्वस्य बंधाय उपसर्पन्तीं मनोरमाममनोरमां वा सर्वामपि कर्मप्रकृति तत्त्वत: कुत्सितशीलां विज्ञाय तया सह रागसंसर्गौप्रतिषेधयति ।।१४६-१४९।। जिसप्रकार कोई पुरुष कुशील पुरुष को जानकर उसके साथ राग करना और संसर्ग करना छोड़ देता है; उसीप्रकार स्वभाव में रत पुरुष कर्मप्रकृति के कुत्सितशील (कुशील) को जानकर संसर्ग करना छोड़ देते हैं। इस गाथा का भाव आत्मख्याति में इसप्रकार स्पष्ट किया गया है - "जिसप्रकार सोने और लोहे की बेड़ी बिना किसी अन्तर के पुरुष को बाँधती है; क्योंकि बंधन की अपेक्षा उनमें कोई अन्तर नहीं है। उसीप्रकार शुभ और अशुभ कर्म बिना किसी अन्तर के जीव को बाँधते हैं; क्योंकि बंधभाव की अपेक्षा उनमें कोई अन्तर नहीं है। ___ अब दोनों ही कर्मों का निषेध करते हैं। जिसप्रकार मनोरम हो या अमनोरम, पर कुशील हथिनीरूपी कुट्टनी के साथ राग और संसर्ग करना हाथी के लिए बंधन का कारण होता है; उसीप्रकार शुभ हों या अशुभ, पर कुशील कर्मों के साथ राग और संसर्ग करना जीव के लिए बंधन का कारण होता है। इसकारण यहाँ शुभाशुभ कर्मों के साथ राग और संसर्ग करने का निषेध किया गया है। अब दृष्टान्त द्वारा यह समझाते हैं कि दोनों कर्म निषेध करने योग्य हैं। जिसप्रकार कोई जंगल का कुशल हाथी अपने बंधन के लिए निकट आती हुई सुन्दर मुखवाली मनोरम अथवा अमनोरम हथिनीरूपी कुट्टनी को परमार्थत: बुरी जानकर उसके साथ राग या संसर्ग नहीं करता; उसीप्रकार आत्मा अरागी ज्ञानी होता हुआ अपने बंध के लिए समीप आती हुई (उदय में आती हुई) मनोरम या अमनोरम (शुभ या अशुभ) सभी कर्मप्रकृतियों को परमार्थत: बुरी जानकर उनके साथ राग तथा संसर्ग नहीं करता।" जंगली हाथियों को पकड़ने के लिए जंगल में एक बहुत बड़ा गहरा गड्ढा खोदा जाता है। उसे ढककर ऊपर मिट्टी डालकर दूब-घास और झाड़ियाँ डाल दी जाती हैं, जिससे ठोस जमीन ही प्रतीत हो । जंगली हाथियों को फँसाने के लिए एक चतुर हथिनी को प्रशिक्षित (ट्रेण्ड) करते हैं। __ वह हथिनी अपनी कामुक चेष्टाओं से जंगली हाथियों को आकर्षित करती है, मोहित करती है और अपने पीछे-पीछे आने के लिए प्रेरित करती है। उनसे नाना प्रकार की क्रीड़ाएँ करती हुई वह हथिनी उन्हें उस गड्ढे के समीप लाती है। तेजी से भागती हुई वह कुट्टनी हथिनी तो जानकार होने से उस गड्ढे से बचकर निकल जाती है, पर तेजी से पीछा करनेवाला कामुक हाथी भागता हुआ उस गड्ढे में गिर जाता है। इसप्रकार वह अपनी स्वाधीनता खो देता है, बंधन में पड़ जाता है।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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