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________________ १९२ समयसार “यदि पुद्गलद्रव्य जीव में स्वयं अबद्ध रहे और स्वयं कर्मभाव से परिणमित न हो तो वह अपरिणामी सिद्ध होगा। ऐसा होने पर संसार का अभाव सिद्ध होगा। कारण यह है कि कार्मणवर्गणा के कर्मरूप हुए बिना जीव कर्म रहित सिद्ध होगा, ऐसी स्थिति में संसार कैसा? क्योंकि जीव की कर्मबद्ध अवस्था का नाम ही तो संसार है। इससे बचने के लिए यदि यह तर्क उपस्थित किया जाये कि जीव पुद्गलद्रव्य को कर्मभाव से परिणमाता है, इसलिए संसार का अभाव नहीं होगा। किं स्वयमपरिणममानं परिणममानं वा जीव: पुद्गलद्रव्यं कर्मभावेन परिणामयेत् ? न तावत्तत्स्वयमपरिणममानं परेण परिणमयितुं पार्येत, न हि स्वतोऽसती शक्तिः कर्तुमन्येन पार्यते । स्वयं परिणममानं तु न परं परिणमयितारमपेक्षेत, न हि वस्तुशक्तयः परमपेक्षते । ततः पुद्गलद्रव्यं परिणामस्वभावं स्वयमेवास्तु। तथा सति कलशपरिणता मृत्तिका स्वयं कलश इव जडस्वभावज्ञानावरणादिकर्मपरिणतं तदेव स्वयं ज्ञानावरणादिकर्म स्यात् । इति सिद्धे पुद्गलद्रव्यस्य परिणामस्वभावत्वम् ।।११६-१२०।। (उपजाति) स्थितेत्यविघ्ना खलु पुद्गलस्य स्वभावभूता परिणामशक्तिः। तस्यां स्थितायां स करोति भावं यमात्मनस्तस्य स एव कर्ता ।।६४।। इस तर्क पर विचार करने पर यह प्रश्न उपस्थित होता है कि स्वयं अपरिणमित पुदगलद्रव्य को जीव कर्मरूप परिणमाता है कि स्वयं परिणमित पुद्गलद्रव्य को? __ स्वयं अपरिणमित पदार्थ को दूसरे के द्वारा परिणमित कराना शक्य नहीं है; क्योंकि वस्तु में जो शक्ति स्वतः न हो, उसे अन्य कोई नहीं कर सकता। तथा स्वयं परिणमित होनेवाले पदार्थ को अन्य परिणमन करानेवाले की अपेक्षा नहीं होती; क्योंकि वस्तु की शक्तियाँ पर की अपेक्षा नहीं रखतीं। इसप्रकार दोनों ही पक्षों में यह बात सिद्ध नहीं होती कि जीव पुद्गलद्रव्य को कर्मरूप परिणमाता है। अत: यही ठीक है कि पुद्गलद्रव्य स्वयं परिणामस्वभावी हो। ऐसी स्थिति में जिसप्रकार घटरूप परिणमित मिट्टी ही स्वयं घट है; उसीप्रकार जड़स्वभाववाले ज्ञानावरणादि कर्मरूप परिणमित पुद्गलद्रव्य ही स्वयं ज्ञानावरणादि कर्म है। इसप्रकार पुद्गलद्रव्य का परिणामस्वभावत्व सिद्ध हुआ।" उक्त कथन से यह बात अत्यन्त स्पष्ट हो गई है कि कार्माणवर्गणारूप पुद्गलद्रव्य अपने परिणमनस्वभाव के कारण ही कर्मरूप परिणमित होता है। आगामी कलश में भी इसी बात को स्पष्ट किया गया है, जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है - (हरिगीत ) सब पुद्गलों में है स्वभाविक परिणमन की शक्ति जब। और उनके परिणमन में है न कोई विघ्न जब ।। क्यों न हो तब स्वयं कर्ता स्वयं के परिणमन का।
SR No.008377
Book TitleSamaysar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size1 MB
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