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________________ REPF ॥ उत्तर में हाथ जोड़कर दक्षिणांक ने बड़ी नम्रता के साथ निवेदन किया - "स्वामिन्! सम्राट को जब समस्त पृथ्वी साध्य हो चुकी तो मार्ग में उन्होंने पिताश्री (ऋषभदेव) के दर्शन किये। तदनन्तर भाग्य से माताजी के भी दर्शन हुए, फिर उनको अपने छोटे भाई (आपश्री) को देखने की इच्छा हुई। हमसे उन्होंने गुप्तरूप से पूछा था कि “मेरे भाई बाहुबली को देखने का क्या उपाय है ? तब हम लोगों ने कहा कि “राजन्! जैसे आपके मन में छोटे भाई को देखने की इच्छा हुई है, उसीप्रकार आपके छोटे भाई के मन में भी आपको देखने की इच्छा हुई होगी।" तब सम्राट ने हमसे कहा - "तुम ठीक कहते हो; परंतु अभी उसको सुख | से रहने दो। पिताजी ने भी उसे बहुत प्रेम से पाला-पोसा है। मेरी छोटी माँ का वह इकलौता बेटा है। इसलिए उसे अभी कष्ट नहीं देना चाहिए। जब हम अयोध्या में पहुँचेंगे तब छोटी माँ को बुलवायेंगे तब बाहुबली भी आयेगा। तभी उससे मिल लेंगे।" हम लोगों ने उनसे पुनः प्रार्थना की कि "स्वामिन्! जब अयोध्या में आयेंगे तब तो आप लोग महल में बातचीत करेंगे। इसकारण हमें निकट से मिलने का मौका नहीं मिलेगा। यदि आप अभी सबके सामने मिलेंगे तो हम लोग भी आप दोनों भाइयों को देखकर धन्य हो सकते हैं। इसलिए पोदनपुर के पास से जाते समय हमारी हार्दिक भावनाओं को ध्यान में रखकर भरतेश्वर ने आपको बुलाने की अनुमति दे दी।" दक्षिणांक दूत ने आगे कहा - "पोदनपुर के बाहर ही आपके बड़े भाई हैं। वहाँ तक पधार कर हम लोगों की आँखों को तृप्त करें।" इसप्रकार कहते हुए दक्षिणांक ने साष्टांग नमस्कार किया। बाहुबली ने साष्टांग नमस्कार करते दक्षिणांक को उठाते हुए कहा - "दक्षिण! उठो! उठो! हम भाई भरत और तुम्हारी भावनाओं की कद्र करते हैं, आप लोग निश्चित होकर अपने नगर की ओर जावें । मैं कल ही अयोध्या आकर भाई भरतजी से मिलूँगा।" दक्षिणांक ने कहा - "स्वामिन्! उससे तो मात्र आप दोनों को ही संतोष होगा, हम सब लोग आपके स्नेह मिलन के दर्शन लाभ से वंचित रह जायेंगे। अत: सबकी इच्छापूर्ति के लिए सम्राट ने सेना को यहाँ ठहराया है। इसलिए हम लोगों की प्रार्थना स्वीकार होनी चाहिए। इसी में हम सबका गौरव है। बहुत आशा | १४ FREE_ncy | E FhwYE
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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