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________________ OF EFFE F F (१७४|| से सभी आप दोनों के एकसाथ दर्शन करने की भावना से खड़े हैं और आतुरता से आपकी प्रतीक्षा कर || रहे हैं। जब उनको मालूम होगा कि आप नहीं आ रहे हैं तो वे खेद-खिन्न होंगे। इसलिए हे कामदेव! आप अवश्य पधारें।" बाहुबली ने कहा - "अभी मुझे यहाँ पर कई आवश्यक कार्य हैं, इसलिए अभी आना नहीं हो सकेगा। तुम अयोध्या पहुँचो, मैं अपने आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर वहीं आऊँगा।" | दक्षिणांक बोला - “नहीं! स्वामिन्! ऐसा नहीं कीजिये। आप दोनों को एकसाथ जिस सेना ने नहीं देखा है, उसके मन को संतुष्ट कीजिये। भरतेश्वर सदृश बड़े भाई से मिलने से बढ़कर और महत्त्वपूर्ण कार्य क्या हो सकता है ? इसलिए हाथ जोड़कर मेरी विनती है कि आप अभी मिलने से इन्कार न करें।" ___ बाहुबली ने कहा – “दक्षिण! तुम तो किसी न किसी उपाय से अपने कार्य को साधना चाहते हो, परन्तु मैं इसतरह चक्रवर्ती भरत से नहीं मिलूंगा। चक्रवर्ती भरत को मुझसे युद्ध में सामना करना होगा।" दक्षिणांक बोला - "आप दोनों भगवान ऋषभदेव के पुत्र हैं। आप स्वयं कामदेव और आपके भाई चक्रवर्ती हैं। आप लोग जगत के मार्गदर्शक हैं। यदि आप लोग ही परस्पर में युद्ध करेंगे तो प्रजा में भी यही संदेश जायेगा। 'यथा राजा तथा प्रजा' की उक्ति के अनुसार भाई-भाई आपस में लड़ेंगे, झगड़ेंगे और आप लोगों का उदाहरण प्रस्तुत करेंगे। अत: आप दोनों भाई परस्पर में ही समझौते का मार्ग अपनायें। आप अपने बड़े भाई के पास न जाकर क्रोध करेंगे तो साधारण जन तो हाथापाई पर उतर आयेंगे । हथियार उठाकर हत्यायें करने लगेंगे। प्रभो! आप लोग तो प्रजा के पालक और मार्गदर्शक हैं। स्वामिन्! विचार कीजिए! गुरु को शिष्य, पिता को पुत्र, पति को पत्नी, बड़े भाई को छोटे भाई यदि उचित आदर देते हैं, उन्हें नमस्कार करते हैं तो इसमें अनुचित क्या है ? फिर आपके अग्रज सामान्य राजाओं की भांति नहीं है। वे चक्रवर्ती राजा हैं। दिग्विजय करना उनकी बाध्यता है, उसके बिना चक्ररत्न शस्त्रालय में प्रवेश ही नहीं करेगा। आप स्वयं सब तरह से प्रबुद्ध हैं, आप स्वयं सोचिए - 'ऐसी स्थिति में बड़े भाई |TER EYE | माइ॥१४
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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