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________________ @REP ॥ सबने चक्री से प्रार्थना की कि “प्रभो! इस बल प्रदर्शन का प्रयोजन क्या है ?" उत्तर में चक्री ने वह | सब रहस्य उद्घाटित कर दिया कि "उन दो सैनिक विद्याधरों ने मुझको एक सामान्य मनुष्य कहा था और | सेना के बल पर चक्रवर्ती बने बैठे हैं - ऐसा अभिमान जताया था। अत: उनके नेत्र खोलने हेतु मैंने अपनी शक्ति प्रदर्शित की है।" | आधीनता स्वीकार करने का प्रस्ताव पाते ही ९७ सहोदरों ने तो आधीनता स्वीकार नहीं करते हुए दीक्षा ही ले ली', यह जानकर भरतेश को बहुत दुःख हुआ, अत: वे यह नहीं चाहते थे कि बाहुबली भी एकदम दीक्षा ले लें। भरतजी को चक्रवर्ती होने का नियोग था, अत: छहखण्ड पर विजय प्राप्त करने हेतु युद्ध करना उनकी मजबूरी थी। चक्ररत्न के रुकने से उन्हें ऐसा करना पड़ रहा था; भरतजी का प्रस्ताव तो उन सब भाइयों को निमित्त मात्र था। उनके तो दीक्षित होने का काल ही आ गया था। अत: जिसका जो होना था उन्हें वैसे निमित्त मिल गये। अस्तु... भरतजी को भाइयों के स्वाभिमान पर एवं धर्मवीरता पर गौरव भी हुआ। भरतजी ने सोचा - "बाहुबली || भी कम स्वाभिमानी नहीं है। वह तो कामदेव भी है; परन्तु उसका भी दीक्षित हो जाना तो हमें बिल्कुल अभीष्ट नहीं है और वह स्वाभिमान वश झुकनेवाला भी नहीं है। वैसे वह अत्यन्त विनयशील है, बड़े भाई के नाते उसे नमस्कार करने में कतई आपत्ति नहीं होगी - ऐसा मुझे विश्वास है; परन्तु उसके द्वारा आधीनता स्वीकृत करना भी सहज कार्य नहीं है। अत: पत्र द्वारा संदेश भेजने से काम नहीं बनेगा, दूत भेजना पड़ेगा। __यह विचार कर उन्होंने निश्चय किया कि “दक्षिणांक इस काम के लिए सर्वोत्तम दूत है, उसे भेजा जाय।" भरतजी ने दक्षिणांक दूत को बाहुबली के पास भेजा। ___ बाहुबली के मंत्री व मित्रों को अपने आने का कारण कहकर एवं उनके अनुकूल बनकर भरत का संदेशवाहक दक्षिणदूत संधि का संदेश लेकर जब बाहुबली के दरबार में पहुँचा तो बाहुबली ने दक्षिणांक को देखकर प्रश्न किया कि “दक्षिण! तुम किस कार्य से आये हो ? बोलो!" FEEncy |E thwYE १४
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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