SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७६ प्रवचनसार का सार अब आचार्य कहते हैं कि यदि वस्तु अर्थात् आत्मा पलटती नहीं होती तो फिर निगोद में ही होती, आज मनुष्यगति में नहीं आ पाती। अतः ये जो पलटनेवाला स्वभाव है, जिसे कुछ मुमुक्षु अपना स्वभाव ही मानने को तैयार नहीं हैं, जिसे वे हीन दृष्टि से देखते हैं; उन्हें यह समझना जरूरी है कि उस स्वभाव के कारण ही तुम निगोद से निकलकर यहाँ तक आए हो एवं उसी स्वभाव के कारण इस संसार से निकलकर मोक्ष में जाओगे। इसलिए मैंने लिखा है कि - जब अनित्यता वस्तु धर्म तो क्योंकर दुःखकर हो सकती। और जब स्वभाव ही दुःखमय हो सुखमयी कौनसी हो शक्ती ।। इस भगवान आत्मा में ४७ शक्तियों में से एक उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्व नामक शक्ति भी है। वह शक्ति अनादि अनंत है, वह शक्ति आत्मा का स्वभाव है। जब उत्पाद-व्यय- ध्रौव्यरूप होना आत्मा का स्वभाव है; तब पलटना आत्मा के लिए दुःखकर कैसे हो सकता है ? तब वे कहते हैं कि गुरुदेवश्री ने कहा है कि यह आत्मा पर से भिन्न है, पर्याय से भिन्न है और अब आप कह रहे हो कि पर्याय अर्थात् पलटना वस्तु का स्वभाव है। यह मतभेद नहीं, विवक्षा की भिन्नता है। परिवर्तनशील अंश पर दृष्टि केन्द्रित रहने से दृष्टि में अस्थिरता बनी रहती है। परिवर्तनशील अंश में अपनत्व स्थापित करने से सदा दुःख के ही प्रसंग बनते हैं। यह परदेशी की प्रीति जैसा है; क्योंकि परदेशी चार दिन रहकर फिर जानेवाला है। उससे प्रेम करनेवाले तो दुःखी ही होनेवाले हैं; इसलिए उससे राग करने का, उसमें अपनत्व स्थापित करने का निषेध है। इसीप्रकार यहाँ विवक्षा विशेष से पर्याय का निषेध किया गया है। निषेध तो एक विशिष्ट पर्याय का ही किया गया है, परिणमन का निषेध नहीं किया गया है, परिणमनस्वभाव का निषेध नहीं किया गया है। 85 ग्यारहवाँ प्रवचन १७७ परिणमन वस्तु का स्वभाव है । उत्पाद और व्यय स्वभाव हैं। जिसका उत्पाद हुआ है, वह नष्ट भी होगा। वस्तु में से उत्पाद-व्यय का नाश नहीं होता है। वस्तु में जो उत्पाद हुआ है, नाश उसका होता है। उत्पाद तो अगले समय में फिर होता है। इसे हम इस उदाहरण से समझ सकते हैं। एक माता के पुत्र हुआ और वह उत्पन्न होते ही प्रसव के दौरान ही मर गया। उत्पन्न हुआ पुत्र मर गया है; परन्तु अभी उस माँ में पुत्र उत्पन्न करने की जो शक्ति है; वह तो नहीं मरी। अभी जब उसकी उत्पादन क्षमता नष्ट नहीं हुई तो उत्पाद कहाँ नष्ट हुआ ? उसमें जो राग उत्पन्न हुआ था, वह राग नष्ट हुआ है; उत्पाद तो अभी भी कायम है। अगले समय में वीतरागता का उत्पाद होता है। उत्पाद तो राग में भी है और वीतरागता में भी है। उत्पादकत्व और व्ययत्व का नाश नहीं हुआ; उत्पाद और व्यय तो प्रतिसमय होंगे। पर्याय जो एकबार चली गई; अब वह उस पर्याय के रूप में पुनः कभी नहीं आएगी; किन्तु केवली के ज्ञान में तो वह खचित हैं, विद्यमान ही है। स्वकाल में वह पर्याय खचित है; परंतु अब न वह काल आएगा और न ही वह पर्याय । सर्वज्ञ भगवान की वाणी से जो तत्त्व समझा जाता है, उसमें जो मर्म होता है, गहराई होती है, सत्यार्थता होती है; वह सत्यार्थता अपनी कल्पना से समझने में नहीं आ सकती। पूज्य गुरुदेवश्री ने क्रमबद्धपर्याय को आगम के आधार से समझा और समझाया और अब यही सिद्धान्त वैज्ञानिकों की समझ में भी आ रहा है और वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि भूत-वर्तमान भविष्य निश्चित है; परन्तु इस निष्कर्ष में उन्हें सर्वज्ञ का सहारा नहीं था। उन्होंने अपनी बुद्धि से कल्पना के माध्यम से इस जगत को देखा; जिसमें एक बहुत हुई है। जब मैं अमेरिका गया; तब लोगों ने मुझे एक अमेरिकन फिल्म का
SR No.008370
Book TitlePravachansara ka Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size604 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy