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________________ प्रवचनसार का सार उक्त संदर्भ में निम्नांकित गाथा दृष्टव्य है - जदि पच्चक्खमजादं पज्जायं पलयिदं च णाणस्स । ण हवदि वा तं णाणं दिव्वं त्ति हि के परूवेंति ।।३९।। (हरिगीत) पर्याय जो अनुत्पन्न हैं या हो गई हैं नष्ट जो। फिर ज्ञान की क्या दिव्यता यदि ज्ञात होवें नहीं वो ।।३९।। यदि अनुत्पन्न और नष्ट पर्यायें ज्ञान (केवलज्ञान) के प्रत्यक्ष नहीं होती हों, तो वास्तव में उस ज्ञान को दिव्य कौन कहेगा ? ___यदि केवलज्ञान में भूत और भावी पर्यायें नहीं झलकती हैं तो उस ज्ञान को दिव्य कौन कहेगा ? इससे तो हमारा मतिज्ञान ही अच्छा है; जो थोड़ा बहुत भविष्य जान लेता है। कल बुधवार है। अनंतकाल के बाद भी बुधवार, मंगलवार के बाद ही आएगा। भविष्य में होनेवाली ऐसी बहुत-सी बातें हम जानते हैं, तब हमारा ही ज्ञान अच्छा है, जो कम से कम इतना तो जानता है। अरे भाई ! यदि सर्वज्ञता ख्याल में आ गई तो कुछ भी शेष नहीं रह जाता है; परन्तु यदि सर्वज्ञता समझ में नहीं आई तो चाहे जितना जैनदर्शन समझ लीजिए; कुछ भी होनेवाला नहीं है। यदि सर्वज्ञता समझ में नहीं आई तो तीर्थों के नाम पर अतिशय खड़े होते जाएँगे; पुत्रादिक देनेवाले, भूत भगवानेवाले देव खड़े हो जाएंगे। एक सर्वज्ञता समझ में आई तो अनिवार्यरूप से सम्यग्दर्शन प्रगट होगा। ऐसा समझ लीजिए की पूरीतरह से सर्वज्ञता तभी समझ में आएगी; जब निकट भविष्य में सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होनेवाली हो । जो जाणदि अरहतं दव्वत्तगुणत्तपज्जयत्तेहिं । सो जाणदि अप्पाणं मोहो खलु जादि तस्स लयं ।।८।। (हरिगीत) द्रव्यगुणाय से जो जानते अरहंत को। वे जानते निज आतमा दृगमोह उनका नाश हो ।।८।। चौथा प्रवचन जो अरहंत को द्रव्यरूप से, गुणरूप से और पर्यायरूप से जानता है; वह आत्मा को जानता है और उसका मोह निश्चय से नष्ट होता है। अरहंत को द्रव्य-गुण-पर्याय से जानेगा अर्थात् सही अर्थ में सर्वज्ञता को जानेगा; वीतरागता को जानेगा; उसके मिथ्यात्व का नाश होगा, उसे सम्यक्त्व की प्राप्ति होगी। ४०-५० वर्ष पूर्व ज्ञानपीठ की ओर से एक 'ज्ञानोदय' नामक अखबार निकलता था । बहुत स्तरीय मासिक था। इसका एक विशेषांक निकला था; जिसका विषय था '१०० साल के बाद दुनियाँ में क्या होगा?' करीब ६०० पृष्ठ का यह विशेषांक लगभग ४७-४८ वर्ष पूर्व प्रकाशित हुआ था। उसमें एक लेख जीवविज्ञान के सन्दर्भ में था। एक लेखक ने लिखा था कि पेट में बच्चे रखने से माता-बहिनों को बहुत कष्ट होता है। १०० साल बाद महिलाएँ इस कष्ट से मुक्त हो जाएंगी और बाजार में बच्चे वैसे ही मिलेंगे जैसे आज कुत्ता-बिल्ली मिलते हैं। जैसे आप गाय, भैंस, कुत्ते, बिल्ली खरीद लाते हैं; वैसे ही इन्जीनियर बच्चे, डॉक्टर बच्चे; सब प्रकार के बच्चे खरीद लायेंगे। यदि कोई आदमी चाहे तो उनकी इच्छा के अनुसार बच्चे तैयार करा दिए जाएंगे। 'आदमी की उन्नति में सबसे बड़ी बाधा यह सेक्स प्राब्लम (कामेच्छा) है। यह मानव मस्तिष्क को बहुत आन्दोलित करती है। न जाने इसके कारण कितनी समस्याएँ खड़ी हो जाती है।' - ऐसा सोचकर एक पति ने पत्नी से कहा कि - ___“कामेच्छावाला व्यक्ति पूर्णरूप से तरक्की नहीं कर सकता; इसलिए मुझे ऐसा बच्चा चाहिए; जिसमें सेक्स की भावना ही न हो। स्त्रियों का पुरुषों के प्रति और पुरुषों का स्त्रियों के प्रति जो आकर्षणहोता है, विषयभोग का भाव होता है; वह उस बच्चे के अन्दर बिल्कुल ही नहीं होना चाहिए।" तब उसकी पत्नी ने कहा कि - "नहीं, यह तो बहुत जरूरी है।" 32
SR No.008370
Book TitlePravachansara ka Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size604 KB
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