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________________ ६६ प्रवचनसार का सार फिल्म बना रहा है। यह फिल्म बनानेवाला व्यक्ति मुख्य-गौण करेगा। मैं यहाँ अपनी जगह बैठा रहूँगा और आप अपनी जगह बैठे रहेंगे; सभी अपनी-अपनी जगह अपनी-अपनी हैसियत से बैठे रहेंगे। उस कैमरामेन ने वक्ता के चेहरे पर कैमरा फिक्स कर दिया या किसी श्रोता के चेहरे पर कैमरा फिक्स कर दिया। वह किसी एक श्रोता का चेहरा बड़ा कर दे, किसी श्रोता का चेहरा दिखाए ही नहीं, दूर से ही दिखाए अथवा पीछे से दिखाए। यह सब मुख्य- गौण उस कैमरा में हो रहा है। इस हॉल में बैठे हुए लोगों की जो स्थिति है, उसमें कोई मुख्यगौण नहीं हुआ है; वह स्थिति तो जैसी थी, वैसी ही है । डॉक्टर ने आपकी बीमारी की जाँच की। उसने जो बीमारी है; उसमें कोई मुख्य-गौण नहीं किया। उसके समझ में सब आ गया है - उसका यह ज्ञान प्रमाणज्ञान है। फिर जब डॉक्टर से मरीज बार-बार पूछता है कि क्या बात है; तब वह गौण करता है और कहता है कि 'कोई बात नहीं है; आप बिल्कुल ठीक हैं, कोई दिक्कत नहीं है। बस! दो गोली रोजाना लेना, ठीक हो जाओगे। इसप्रकार उसने जो नहीं बताया है और ठीक है-कह रहा है; वह सिर्फ वाणी में हो रहा है । जो वस्तु व ज्ञान में है, उसमें कुछ भी फर्क नहीं आया है। जब वही डॉक्टर घरवालों से कहता है कि स्थिति बहुत खतरनाक है। अब तो राम का नाम लो, हमारा कुछ काम नहीं है। ये जो दवाईयाँ लिख दी हैं, वह मरीज के संतोष के लिए लिखी हैं। ये तो ताकत और दर्द की दवाईयाँ हैं। इनसे कुछ भी होनेवाला नहीं है। यह जो डॉक्टर की वाणी में फर्क आया है, वह वाणी के स्तर पर ही आया है; वस्तु के स्तर पर, जानने के स्तर पर नहीं। जो वस्तु की स्थिति है, उसमें नय कहाँ हैं ? ये नय तो श्रुतज्ञान में हैं, वाणी में हैं। हमने विभिन्न नयों से जो निरूपण किया, वह सब हमने वस्तु पर लाद दिया। जैसे, तुम्हें देखकर हमें गुस्सा आता है तो हम यह मानने लगते हैं कि गुस्से का कारण तुम हो। हमने ही ऐसी धारणा बना रखी 30 चौथा प्रवचन ६७ है । हमने ऐसा मान लिया है कि इनकी शक्ल ही ऐसी है कि जिसे देखकर गुस्सा आता है। यह कहता है कि कुछ लोगों की शक्लें ऐसी होती हैं कि देखते ही गुस्सा आता है और कुछ लोगों की ऐसी होती हैं कि देखते ही प्रेम उमड़ता है। उससे कहते हैं कि अरे भाई ! यह तो तेरे अंदर का राग है। आदमी की शक्ल में कुछ भी ऐसा नहीं है, उसने कुछ भी नहीं किया है। किसी भी आदमी की शक्ल कुत्ते और बिल्ली से अधिक खराब तो नहीं होती है, गाय और भैंस से अधिक खराब तो नहीं होती ? लोगों को तो कुत्ते-बिल्ली, गाय-भैंस को देखकर भी प्रेम उमड़ता है। वे उन्हें गोदी में लिए फिरते हैं । शक्ल अच्छी या खराब होने से राग-द्वेष का क्या संबंध ? यह राग-द्वेष तो इसके अन्दर की ही विकृति है । जैसे हम कहते हैं कि यह मेरा पुत्र परमात्मप्रकाश है। मैं यहाँ उपस्थित सभी छात्रों को अपने पुत्र परमात्मप्रकाश जैसा ही देखता हूँ। सबको परमात्मा ही देखता हूँ । द्रव्य से तो सभी परमात्मा हैं ही और पर्याय से मेरा बेटा परमात्मप्रकाश जैसा है; वैसे ही आप सबको देखता हूँ। यह कथन मैंने मेरे हृदय में आपके प्रति जो स्नेह है, उसे व्यक्त करने के लिए किया है। अंदर में तो यह भेदविज्ञान विद्यमान है कि वह मेरा बच्चा है और आप मेरे बच्चे नहीं हैं। ऐसे ही सर्वज्ञ भूत और भविष्य को वर्तमानवत् जानते हैं, वर्तमान नहीं। ऐसा इसलिए कहा गया है कि उनके जानने में कोई अस्पष्टता नहीं है, धुँधलापन नहीं है। ज्ञान तो उसी का नाम है, जिसमें सम्पूर्ण स्थिति स्पष्ट दिखाई दे । चित्रपट में भी ऐसा होता है। एक ही चित्र में पूर्वभव, परभव और वर्तमान भव का चित्रण होता है। ऐसा चित्र होता है, जिसमें एक तरफ मारीच बैठा है, शेर बैठा है और दूसरी तरफ भगवान महावीर का चित्र है। ऐसे ही केवलज्ञान में भी, एक ही ज्ञान में अनेक भव एकसाथ दिखते हैं।
SR No.008370
Book TitlePravachansara ka Sar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages203
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size604 KB
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