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________________ ४०५ चरणानुयोगसूचकचूलिका : आचरणप्रज्ञापनाधिकार श्रामण्य की सामग्री पर्याप्त होने से श्रमण होता है। तथाहि - तत इदं यथाजातरूपधरत्वस्य गमकं बहिरंगमन्तरंगमपि लिंगं प्रथममेव गुरुणा परमेणार्हद्भट्टारकेण तदात्वे च दीक्षाचार्येण तदादानविधानप्रतिपादकत्वेन व्यवहारतो दीयमानत्वाद्दत्तमादानक्रियया संभाव्य तन्मयोभवति । ततोभाव्यभावक प्रवृत्तेतरेतरसंवलनप्रत्यस्तमितस्वपरविभागत्वेन दत्तसर्वस्वमूलोत्तरपरमगुरुनमस्क्रियया संभाव्य भावस्तववन्दनामयोभवति। ततः सर्वसावद्ययोगप्रत्या-ख्यानलक्षणैकमहाव्रतश्रवणात्मनाश्रुतज्ञानेन समये भवन्तमात्मानं जानन् सामायिकमधिरोहति। ततः प्रतिक्रमणालोचनप्रत्याख्यानलक्षणक्रियाश्रवणात्मना श्रुतज्ञानेन त्रैकालिककर्मभ्यो विविच्यमानमात्मानं जानन्नतीतप्रत्युत्पन्नानुपस्थितकायवाङ्मन:कर्मविविक्तत्वमधिरोहति। ततः समस्तावद्यकर्मायतनं कायमुत्सृज्य यथाजातरूपं स्वरूपमेकमेकाग्रेणालम्ब्य व्यवतिष्ठमान उपस्थितोभवति उपस्थितस्तु सर्वत्र समदृष्टित्वात्साक्षाच्छ्रमणोभवति ।।२०७।। अब इसी बात को विस्तार से स्पष्ट करते हैं - इस यथाजातरूपधरत्व के सूचक बहिरंग व अंतरंग लिंग के धारण की विधि के प्रतिपादक होने से अरहंत भगवान और दीक्षाचार्य व्यवहार से मुनिलिंग के देनेवाले कहे जाते हैं। दीक्षार्थी उक्त देने और लेने की क्रिया से उन्हें सम्मानित करके उनसेतन्मय होता है। इसके बाद भाव्य-भावकभाव से प्रवर्तित परस्पर मिलन के कारण स्वपरविभाग अस्त होने से सर्वस्वदातार मूल परमगुरु अरहंतदेव और उत्तर परमगुरु दीक्षाचार्य को नमस्कार क्रिया के द्वारा सम्मानित करके भावस्तुतिवंदनामय होता है। इसके बाद सर्व सावद्ययोग के प्रत्याख्यानस्वरूप एक महाव्रत को सुननेरूप श्रुतज्ञान के द्वारा समय (आत्मा) में परिणमित होते हुए आत्मा को जानता हुआ सामायिक में आरूढ़ होता है। इसके बाद प्रतिक्रमण-आलोचना-प्रत्याख्यानस्वरूप क्रिया को सुननेरूप श्रुतज्ञान के द्वारा कालिक कर्मों से भिन्न किये जानेवाले आत्मा को जानता हुआ; अतीत-अनागतवर्तमान, मन-वचन-कायसंबंधी कर्मोंसे भिन्नता में आरूढ़ होता है। इसके बाद समस्त सावध कर्मों के आयतनभूत काय का उत्सर्ग (उपेक्षा-त्याग) करके
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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