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________________ ३५६ प्रवचनसार उपरक्त होने से परद्रव्यप्रवृत्तपरिणाम विशिष्ट परिणाम है और पर के द्वारा उपरक्त न होने से स्वप्रवृत्तपरिणाम अवशिष्ट परिणाम है। विशिष्ट परिणाम के पूर्वोक्त दो भेद हैं - शुभ परिणाम और अशुभ परिणाम । पुण्यरूप पुद्गल के बंध का कारण होने से शुभ परिणाम पुण्य है और पापरूप पुद्गल के बंध का कारण होने से अशुभपरिणाम पापहैं। अविशिष्ट परिणाम तो शुद्ध होने से एक है; इसलिए उसके भेद नहीं है। वह अविशिष्ट परिणाम यथाकाल संसार दुःख के हेतुभूत कर्मपुद्गल के क्षय का कारण होने से संसार दुःख का हेतुभूत कर्मपुद्गल का क्षयस्वरूप मोक्ष ही है।" आचार्य जयसेन तात्पर्यवृत्ति टीका में इन गाथाओं का भाव मूलत: तो तत्त्वप्रदीपिका के समान ही स्पष्ट करते हैं; परन्तु अन्त में समागत 'समय' शब्द का अर्थ ‘परमागम' और 'काललब्धि' करते हैं। अथ जीवस्य स्वपरद्रव्यप्रवृत्तिनिवृत्तिसिद्धये स्वपरविभागं दर्शयति । अथ जीवस्य स्वपरद्रव्यप्रवृत्तिनिमित्तत्वेन स्वपरविभागज्ञानाज्ञाने अवधारयति - भणिदा पुढविप्पमुहा जीवणिकायाध थावरा य तसा। अण्णा ते जीवादो जीवो वि य तेहिंदो अण्णो ।।१८२।। अन्त में किंच कहकर उन्होंने विषयवस्तु का गुणस्थान परिपाटी से विशेष स्पष्टीकरण किया है; जो मूलत: पठनीय है। उक्त सम्पूर्ण कथन का सार यह है कि बंध और मोक्ष परिणामों से ही होता है, किसी क्रियाविशेषसे नहीं। परिणाम दो प्रकार के हैं-परद्रव्यप्रवृत्त और स्वद्रव्यप्रवृत्त। यहाँपरद्रव्यप्रवृत्त परिणामों को विशिष्ट परिणाम और स्वद्रव्यप्रवृत्त परिणामों को अविशिष्ट परिणाम कहते हैं। विशिष्ट परिणाम अर्थात् अशुद्ध परिणाम, शुभ परिणाम और अशुभ परिणाम के भेद से दो प्रकार के हैं। पुण्यबंध के कारण होने से शुभ परिणामों को पुण्य या पुण्य परिणाम कहते हैं और पापबंध के कारण होने से अशुभ परिणामों को पापया पाप परिणाम कहते हैं। अविशिष्ट परिणाम अर्थात् शुद्ध परिणाम एक प्रकार का ही है, उसके कोई भेद नहीं है। जिसप्रकार पुण्यबंध का कारण होने से शुभभाव को पुण्य और पापबंध का कारण होने से अशुभभावकोपापकह दिया जाता है; उसीप्रकार अविशिष्ट परिणाम अर्थात् शुद्धभाव मोक्ष का कारण होने से मोक्ष ही है - यह कहना अनुचित नहीं है।
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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