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________________ ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन : द्रव्यविशेषप्रज्ञापन अधिकार २९७ स्वयं निरंश है। यह अंश कल्पना ऊर्ध्वप्रचय संबंधी है। प्रत्येक द्रव्य के समान कालद्रव्य भी प्रतिसमय उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से संयुक्त है। पूर्व अथ कालपदार्थस्यास्तित्वान्यथानुपपत्त्या प्रदेशमात्रत्वं साधयति - जस्स ण संति पदेसा पदेसमेत्तं व तच्चदो णाएं। सुण्णं जाण तमत्थं अत्यंतरभूदमत्थीदो।।१४४।। यस्य न सन्ति प्रदेशा: प्रदेशमात्रं वा तत्त्वतो ज्ञातम्।। शून्यं जानाहि तमर्थमर्थान्तरभूतमस्तित्वात् ।।१४४।। पर्याय के व्यय, उत्तर पर्याय के उत्पाद और द्रव्य का ध्रुवत्व - यह प्रत्येक द्रव्य की स्वरूपसंपदा है; इसलिए यह सुनिश्चित ही है कि एक समय में होनेवाले उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य द्रव्य में ही घटित होते हैं, एक पर्याय में नहीं। अतः कालाणु द्रव्य का अस्तित्व स्वीकार किये बिना एक समय में उत्पाद, व्यय और ध्रुवत्व का होना संभव नहीं है। इसप्रकार वह कालद्रव्य निरन्वय नहीं है, अन्वय सहित ही है। यह तो आपको विदित ही है कि ८०वीं गाथा की टीका में द्रव्य-गुण-पर्याय के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि अन्वय द्रव्य है, अन्वय का विशेषण गुण है और अन्वय का व्यतिरेक पर्याय है। उक्त परिभाषा के अनुसार भी कालाणु द्रव्य अन्वय सहित है, निरन्वय नहीं; क्योंकि द्रव्य की परिभाषा ही अन्वय है। अन्त में यह कहा गया है कि जिसप्रकार कालाणुद्रव्य के एक अंश में उत्पाद-व्ययध्रौव्य घटित होते हैं; उसीप्रकार कालाणु द्रव्य के प्रत्येक अंश में भी वे घटित होंगे ही। ___ इसप्रकार यह सुनिश्चित ही है कि सभी द्रव्यों के समान सभी कालाणुद्रव्य भी उत्पादव्यय-ध्रौव्य से संयुक्त हैं।।१४२-१४३ ।। __विगत गाथाओं में यह बताया गया है कि काल पदार्थ प्रत्येक वृत्यंश में उत्पाद-व्ययध्रौव्यवाला है; क्योंकि वह निरन्वय नहीं है, अन्वय से रहित नहीं है, अन्वय से सहित ही है; और अब इस गाथा में यह बताया जा रहा है कि कालपदार्थ अप्रदेशी नहीं, एकप्रदेशी है; क्योंकि प्रदेश के बिना उसका अस्तित्व ही सिद्ध नहीं होता। गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है (हरिगीत) जिस अर्थ का इस लोक में ना एक भी परदेश हो। वह शुन्य ही है जगत में परदेश बिन न अर्थ हो।।१४४||
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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