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________________ २९० प्रवचनसार उसीप्रकार जिसप्रकार एक कालाणु से व्याप्त एक आकाशप्रदेश के उल्लंघन के माप के बराबर एक समय में परमाणु विशिष्ट गतिपरिणाम के कारण लोक के एक छोर से दूसरे छोर समयेनैकस्माल्लोकान्ताद्वितीयं लोकान्तमाक्रामत: परमाणोरसंख्येया: कालाणवः समयस्यानंशत्वादसंख्येयांशत्वं न साधयन्ति ।।१३९।। अथाकाशस्य प्रदेशलक्षणं सूत्रयति आगासमणुणिविटुं आगासपदेससण्णया भणिदं। सव्वेसिं च अणूणं सक्कदि तं देदुमवगासं ।।१४०।। आकाशमणुनिविष्टमाकाशप्रदेशसंज्ञया भणितम् । सर्वेषां चाणूनां शक्नोति तद्दातुमवकाशम् ।।१४०।। आकाशस्यैकाणुव्याप्योंश: किलाकाशप्रदेशः, स खल्वेकोऽपिशेषपञ्चद्रव्यप्रदेशानां परमसौक्ष्म्यपरिणतानन्तपरमाणुस्कन्धानांचावकाशदानसमर्थः । अस्ति चाविभागैकद्रव्यत्वेऽप्यशकल्पनमाकाशस्य, सवेषामणूनामवकाशदानस्यान्यथानुपपत्तेः। तक जाता है; तब उस परमाणु द्वारा उल्लंघित होनेवाले असंख्य कालाणु समय के असंख्य अंशों को सिद्ध नहीं करते; क्योंकि समय निरंश है।" ___ सबकुछ मिलाकर उक्त गाथा में यह कहा गया है कि अनादि-अनन्त नित्य कालाणु कालद्रव्य हैं और पुद्गल का परमाणु एक कालाणु द्रव्य से दूसरे कालाणु द्रव्य तक मन्द से मन्द गति से जावे और उसमें जो काल लगे, उसे कालांश समय कहते हैं, पर्याय कहते हैं। काल द्रव्य अनुत्पन्न और अविनष्ट है और उसकी समय नामक पर्याय उत्पन्नध्वंशी है। इस गाथा और उसकी टीका में विशेष समझने की बात यह है कि जिसप्रकार एक आकाश प्रदेश में अनेक पुद्गलाणु एकसाथ रहते हैं, फिर भी वे निरंश ही हैं; उसीप्रकार एक समय में चौदह राजू जानेवाले पुद्गलाणु भी निरंश हैं। वे क्षेत्र से निरंश हैं और ये काल से निरंश हैं।।१३९|| विगत गाथा में 'समय' को परिभाषित किया गया है और अब इस गाथा में प्रदेश की परिभाषा बताई जा रही है। गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है - (हरिगीत) अणु रहे जितने गगन में वह गगन ही परदेश है। अरे उस परदेश में ही रह सकें परमाणु सब ||१४०।। एक परमाणु जितने आकाश में रहता है, उतने आकाश को आकाश प्रदेश'-इस नाम से कहा गया है और वह समस्त परमाणुओं को अवकाश देने में समर्थ है। आचार्य अमृतचन्द्र इस गाथा के भाव को इसप्रकार स्पष्ट करते हैं -
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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