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________________ ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन : द्रव्यविशेषप्रज्ञापन अधिकार २८९ परमाणु गगनप्रदेश लंघन करे जितने काल में| उत्पन्नध्वंसी समय परापर रहे वह ही काल है।।१३९|| व्यतिपततस्तं देशं तत्सम: समयस्तत: परः पूर्वः। योऽर्थः स काल: समय उत्पन्नप्रध्वंसी ।।१३९।। यो हि येन प्रदेशमात्रेण कालपदार्थेनाकाशस्य प्रदेशोऽभिव्याप्तस्तं प्रदेश मन्दगत्यातिक्रमतः परमाणोस्तत्प्रदेशमात्रातिक्रमणपरिमाणेन तेन समो यः कालपदार्थसूक्ष्मवृत्तिरूपसमय: स तस्य कालपदार्थस्य पर्यायस्ततः एवंविधात्पर्यायात्पूर्वोत्तरवृत्तिवृत्तत्वेन व्यजितनित्यत्वे योऽर्थः तत्तु द्रव्यम् । एवमनुत्पन्नाविध्वस्तो द्रव्यसमयः, उत्पन्नप्रध्वंसी पर्यायसमयः। ____ अनंश: समयोऽयमाकाशप्रदेशस्यानंशत्वान्यथानुपत्तेः । न चैकसमयेन परमाणोरालोकान्तगमनेऽपि समयस्य सांशत्वं, विशिष्टगतिपरिणामाद्विशिष्टावगाहपरिमाणवत् । तथाहिं - यथा विशिष्टावगाहपरिणामादेकपरमाणुपरिमाणोऽनन्तपरमाणुस्कन्धः परमाणोरनंशत्वात् पुनरप्यनन्तांशत्वं न साधयति। तथा विशिष्टगतिपरिणामादेककालाणुव्याप्तैकाकाशप्रदेशातिक्रमणपरिमाणावच्छिन्नैक जब परमाणु एक आकाश प्रदेश का मन्दगति से उल्लंघन करता है, तब उसमें जो काल लगता है, वह समय है और उस समय से पूर्व एवं बाद में भीरहनेवाला जो नित्य पदार्थ है, वह कालद्रव्य है । कालद्रव्य नित्य है और उसकी पर्याय-समय उत्पन्नध्वंसी है। इस गाथा के भाव को आचार्य अमृतचन्द्र तत्त्वप्रदीपिका टीका में इसप्रकार स्पष्ट करते हैं “प्रदेशमात्र कालद्रव्य के द्वारा आकाश का जो प्रदेश व्याप्त हो, उस प्रदेश को जब पुद्गलपरमाणु मंद से मंद गति से उल्लंघन करता है; तब उस प्रदेशमात्र उल्लंघन के माप के बराबर जो कालपदार्थ की सूक्ष्मवृत्तिरूप समय है, वह उस कालद्रव्य की पर्याय है। उस पर्याय के पहले और बाद की वृत्तिरूपसे प्रवर्तमान होने से, जिसका नित्यत्व प्रगट है - ऐसा पदार्थद्रव्य है। इसप्रकार कालद्रव्य अनुत्पन्न-अविनष्ट है और पर्यायरूपसमय उत्पन्नध्वंसी है। वह समय निरंश हैक्योंकि यदिऐसान होतो आकाशद्रव्य के एक प्रदेश का निरंशत्वन बने । एक समय में परमाणु लोक के अन्ततक जाता है और किसी समय के अंश नहीं होते; क्योंकि जिसप्रकार परमाणु के विशिष्ट अवगाहपरिणाम होता है; उसीप्रकार परमाणु के विशिष्ट गतिपरिणाम होता है। इसे विशेष समझाते हैं - जिसप्रकार विशिष्ट अवगाहपरिणाम के कारण एक परमाणु के परिणाम के बराबर अनन्त परमाणुओं का स्कंध बनता है; तथापि वह स्कंध परमाणु के अनन्त अंशों को सिद्ध नहीं करता; क्योंकि परमाणु निरंश है।
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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