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________________ ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन : द्रव्यसामान्यप्रज्ञापन अधिकार १९७ साधनपने सोने से निष्पन्न होता हुआ जो अस्तित्व है, वह सोने का स्वभाव है; उसीप्रकार द्रव्य, क्षेत्र, काल याभाव से जो द्रव्य, गुणों और पर्यायों से पृथक् दिखाई नहीं देता, उस द्रव्य के स्वरूप को धारण करके कर्ता-करण-अधिकरणरूप से प्रवर्त्तमान गुणों और पर्यायों से उत्पन्न द्रव्य का मूल साधनपने द्रव्य से निष्पन्न होता हुआ जो अस्तित्व है, वह द्रव्य का स्वभाव है। इसप्रकार यहाँगुण-पर्यायों से द्रव्य का और द्रव्य से गुण-पर्यायों का अस्तित्व सिद्ध किया गया है और उसे द्रव्य का स्वभाव बताया गया है। जिसप्रकार सोने के उदाहरण से द्रव्य का और गुण-पर्यायों का एक ही अस्तित्व है - यह समझाया है; उसीप्रकार अब सोने के उक्त उदाहरण से ही यह समझाते हैं कि द्रव्य का और उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य काभी एक ही अस्तित्व है और वह द्रव्य का स्वभाव है। यथावाद्रव्येण वाक्षेत्रेण वाकालेन वाभावेन वाकुण्डलाङ्गदपीतताद्युत्पादव्ययध्रौव्येभ्यः पृथगनुपलभ्यमानस्य कर्तृकरणाधिकरणरूपेण कार्तस्वरस्वरूपमुपादाय प्रवर्तमानप्रवृत्तियुक्तै :कुण्डलाङ्गदपीतताद्युत्पादव्ययध्रौव्यैर्निष्पादितनिष्पत्तियुक्तस्य कातस्वरस्य मूलसाधनतया तैर्निष्पादितं यदस्तित्वं स स्वभावः, तथा द्रव्येण वा क्षेत्रेण वा कालेन वा भावेन वोत्पादव्ययध्रौव्येभ्य: पृथगनुपलभ्यमानस्य कर्तृकरणाधिकरणरूपेण द्रव्यस्वरूपमुपादाय प्रवर्तमानप्रवृत्तियुक्तैरुत्पादव्ययध्रौव्यनिष्पादितनिष्पत्तियुक्तस्य द्रव्यस्य मूलसाधनतया तैर्निष्पादितं यदस्तित्वंसस्वभावः।।९।। जिसप्रकार द्रव्य, क्षेत्र, काल याभाव से सोने से अपृथक् कर्ता-करण-अधिकरणरूप से कुण्डलादि उत्पादों के, वाजूबंदादि व्ययों के और पीतत्वादिध्रौव्यों के स्वरूप को धारण करके प्रवर्त्तमान सोने के अस्तित्व से निष्पन्न कुण्डलादि उत्पाद, बाजूबंदादि व्यय और पीतत्वादि ध्रौव्यों से जो सोने का अस्तित्व है, वह सोने का स्वभाव ही है; उसीप्रकार द्रव्य, क्षेत्र, काल याभाव से द्रव्य से अपृथक् कर्ता-करण-अधिकरण से उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यों के स्वरूप को धारण करके प्रवर्त्तमान द्रव्य के अस्तित्व से निष्पन्न उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यों से जो द्रव्य का अस्तित्व है, वह द्रव्य का स्वभाव ही है। जिसप्रकार द्रव्य, क्षेत्र, काल याभाव से कुण्डलादि उत्पादों, बाजू-बंदादि व्ययों और पीतत्वादि ध्रौव्यों से अपृथक् कर्ता-करण-अधिकरणरूप से सोने के स्वभाव को धारण करके प्रवर्त्तमान कुण्डलादि उत्पादों, बाजूबंदादिव्ययों और पीतत्वादिध्रौव्यों से निष्पन्न सोने का मूल साधनपने से, उनसे निष्पन्न होता हुआ जो अस्तित्व है, वह सोने का स्वभाव ही है; उसीप्रकार द्रव्य, क्षेत्र, काल याभाव से उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यों से अपृथक् कर्ता-करण
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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