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________________ नींव का पत्थर ही पलट गई। किसी ने ठीक ही कहा है कि - "सबै दिन जात न एक समान।" विषयभोगों में मग्न सुख-सुविधा भोगी जीवराज के अल्पकाल में ही दुर्दिन आ गये। उसे अनेक रोगों ने घेर लिया। जवानी में ही जब यौवन क्षीण होने लगा और दुर्व्यसनों के कारण लक्ष्मी ने भी नाराज होकर मुँह मोड़ लिया तो मोहनी भी उसकी उपेक्षा एवं अनादर करने लगी। अब तो जीवराज की स्थिति सांप-छछंदर की तरह हो गई। कहते हैं कि सांप द्वारा छछंदर का शिकार करते समय यदि वह छछंदर उसके गले में अटक जाती है, तो उसके निगलने पर सांप का पेट फट जाता है और उगलने पर वह अंधा हो जाता है। यही दशा जीवराज की हो गई। इन सब परिस्थितियों को देख-देख जीवराज अपने किए पर बहुत पछताया। अब उसे अपना भविष्य घोर अंधकारमय लगने लगा। वह किंकर्तव्य विमूढ़ सा हो गया और अब मैं क्या करूँ' इस सोच में पड़ गया। यद्यपि इस दशा में उसे अपनी पूर्व पत्नी समता की बहुत याद आ रही थी परन्तु वह यह सोचकर सहम जाता था कि “अब मैं उसे अपना मुँह कैसे दिखाऊँ?" इसप्रकार जीवराज को अपनी भूल समझ में आ जाने पर अपनी भूल को सुधारने का उपाय सोचने लगा। समता बहुत ही सुशील, सरल स्वभावी, क्षमाशील, धैर्यवान और विवेकी नारी है। वह दूरदर्शी भी बहुत है। पति के ऐसे असह्य अक्षम्य अपराध करने पर भी वह विचलित नहीं हुई, क्रोधानल में नहीं जली। मोहनी जैसी पतिता नारी के प्रति ईष्यालु नहीं हुई। तत्त्वज्ञान के बल पर उसने स्वयं को तो संभाला ही, परिजनों को भी धैर्य बंधाया और जीवराज के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए यह सोचकर आशान्वित बनी रही कि ‘परिणामों की स्थिति सदा एकसी नहीं रहती।' यद्यपि ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में विरले ही सहज-सामान्य रह पाते हैं; परन्तु उसके जीवन में यह धर्म का ही प्रभाव था, जिससे वह (7)
SR No.008361
Book TitleNeev ka Patthar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size233 KB
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