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________________ ६२ नींव का पत्थर बहू हो तो ऐसी मधुर व्यवहार और शान्त स्वभाव का उस पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि वह स्वत: ही बहुत कुछ शान्त हो गया। अब उसे बहुत कम क्रोध आता है; परन्तु जब आता है तो वह अति उग्र हो जाता है, बेकाबू हो जाता है। यद्यपि उसमें प्रतिभा और बुद्धि अपने साथियों की तुलना में किसी से कम नहीं है; परन्तु वह उसका उपयोग पारिवारिक, सामाजिक और राजनैतिक चालबाजियों में नहीं करता। उसे खुशामद भी पसन्द नहीं है, इसकारण न वह किसी की खुशामद करता है और न उसे खुशामदी लोग पसंद हैं। वह स्पष्टवादी है; परन्तु बिना प्रयोजन अपनी स्पष्टवादिता का उपयोग भी नहीं करता । इसकारण सामाजिक व राजनैतिक क्षेत्र में उसकी विशेष पकड़ नहीं है, फिर भी वह अपने आप में खुश है, संतुष्ट है। - - - - - - ज्योत्स्ना के जीवन पर उसकी माँ की छाप बहुत अधिक है। इसकारण धार्मिक क्षेत्र में वह अधिक सक्रिय रहती है। अपनी मीठी बोली, मधुर व्यवहार और धर्मात्माओं के प्रति निस्वार्थ प्रेम होने से वह धार्मिक क्षेत्र में जनप्रिय भी हो गई। गणतंत्र अपने रिजर्व नेचर के कारण भले ही ज्योत्स्ना के बराबर जनप्रिय नहीं हो पाया; परन्तु उसमें भी कुछ ऐसी विशेषतायें हैं, जिनका लोग बराबर लोहा मानते हैं। यदि उसके क्रोधी स्वभाव और रिजर्व नेचर को गौण करके देखें तो वह भी बहुत अच्छा इन्सान है। ज्योत्स्ना के सम्पर्क से अब उसका क्रोध तो कम हुआ ही है, तत्त्वरुचि हो जाने से अब वह धार्मिक और नैतिक विकास के कामों में भी सक्रिय हो रहा है। -- -- ___ एक पड़ोसिन अम्मा को जिज्ञासा जगी, उसे यह जानने की उत्सुकता हुई कि देखें तो सही - ज्योत्स्ना ने सासू माँ पर ऐसा क्या जादू कर दिया है कि इतनी तेज-तर्रार सास पानी-पानी हो गई ? आखिर ज्वालाबाई शान्तिबाई कैसे बन गई ? और दस वर्ष से बहू के साथ उसकी एक ही चौके में कैसे निभ रही है ?" यह साधारण बात नहीं है। यद्यपि पतियों को पलट लेना बहुत कठिन नहीं है; किन्तु क्रोधी पति को पलट लेना आसान भी नहीं है। साथ ही सास-श्वसुर को काबू में करना तो लोहे के चने चबाने जैसा है। इसलिए ज्योत्स्ना तारीफ के काबिल तो है ही। एक दिन उस पड़ोसिन अम्मा ने प्यार से ज्योत्स्ना के सिर पर हाथ फेरते हुए उससे पूछा - "बेटी ! यदि बुरा न माने तो एक बात पूर्वी ?" ____ ज्योत्स्ना ने प्रसन्नता प्रगट करते हुए कहा - "अम्मा ! कैसी बातें करती हो ? इसमें बुरा मानने की क्या बात हैं। तुम ऐसी कौन-सी बुरी बात कहने जा रही हो, जिसका बुरा माना जाय ? तुम कोई ज्ञान की बात पूछ कर अपनी जिज्ञासा ही तो शान्त कर रही हो। यदि बुरी लगनेवाली बात कहोगी तो उसका भी मेरे पास उपाय है।' पड़ोसिन अम्मा ने पूछा - "वह कौन-सा उपाय है जिससे बुरी बात का भी तू बुरा नहीं मानती ?" ज्योत्स्ना ने कहा - "अरे ! अम्मा ! जो भली बात होती है, मैं उसे ही अपनाती हूँ, जो बात मुझे ठीक नहीं लगती, मैं उस पर ध्यान नहीं देती। मैं सोच लेती हूँ कि जो बात कान में पड़ते ही दिमाग खराब करती है, उसे अपनाकर क्या करूँगी ? और अपने दो कान किसलिए हैं ? इसीलिए न कि बुरी बात को इस कान से सुनो और उस कान से निकाल दो। उसे गले से निगलो ही मत । निगलने से ही तो पेट में दर्द की संभावना बनती है। इसलिए मैं तो हमेशा यही करती हूँ कि बुरी बात इस कान से सुनी और उस कान से निकाल दी। इसी कारण कुछ भी/कैसी भी बातें सुनने से मेरे पेट में दर्द नहीं होता।" । ज्योति ने आगे कहा - "जब मैं ऐसा करती हूँ तो दूसरी बार बुरी बात कहने की कोई सोचता ही नहीं है और हाँ, मैं ऐसा करके उससे अपना बोलचाल एवं व्यवहार पूर्ववत् ही चालू रखती हूँ। अपने व्यवहार में फर्क नहीं लाती।" (32)
SR No.008361
Book TitleNeev ka Patthar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size233 KB
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