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________________ बहू हो तो ऐसी बहू हो तो ऐसी एक ही व्यक्ति के दो नाम रखने की बहुत पुरानी परम्परा है। पहले सुना करते थे कि अमुक व्यक्ति का राशि का नाम सन्मति है और चालू नाम सन्तु है। बाद में कहने लगे कि स्कूल का नाम महावीर है और घर का नाम वीरू है। अनेक तीर्थंकरों के नाम भी तो एक से अधिक हैं। इसी परम्परागत रीति-रिवाज के अनुसार ज्योत्स्ना को घर में प्यार से ज्योति कहते जरूर थे; परन्तु वह दीपक की ज्योति की भाँति कलह का काजल और अशान्ति की आग उगलने वाली ज्योति नहीं, बल्कि वह तो चाँद की परछाई ज्योत्स्ना की ज्योति है, जो सुखद-शीतल और प्रशम प्रकाश प्रदान करती है। ___माँ के संस्कार ज्योति के रोम-रोम में समाये हुए हैं। अपने परिवार के साथ सु-समायोजित (एडजेस्टमेंट) करके सुख-शान्ति और सम्मान के साथ कैसे रहा जाता है ? - यदि यह महामंत्र किसी को सीखना हो तो उसे ज्योत्स्ना जैसी पारिवारिक महिला के चरित्र से सीखना होगा। ___ज्योत्स्ना ने ससुराल में आकर अपनी ज्योत्स्ना जैसी शीतलता और संताप रहित आलोक से सबको शान्त एवं आलोकित कर अपने ज्योत्स्ना नाम को सार्थक कर दिखाया। उसने नाम बड़े और दर्शन छोटे' कहावत को झुठला दिया। इसके बदले लोग यह कहने लगे कि - "वाह ! ज्योत्स्ना के बारे में जैसा सुना था, उसे वैसा ही पाया । बहू क्या है ? यह तो यथानाम तथा गुण सम्पन्न कोई देवी है। बहू हो तो ऐसी हो ! ___मुहल्ले भर में सबसे तेज-तर्रार मानी जाने वाली सास भी जिसकी प्रशंसा करते-करते थकती नहीं है, जिसका गुणगान करते-करते श्वसुर का गला भर आता है। उस बहू की जब वे अड़ौसी-पड़ौसियों से प्रशंसा सुनते हैं तो वे मुस्कुराते हुए बड़े गौरव से कहते हैं - 'आखिर बहू किसकी है ?' पड़ौसी भी कहते हैं - 'हाँ भाई ! तुम बहुत भाग्यशाली हो, जो तुम्हें ज्योत्स्ना जैसी बहू मिल गई। हमें तो यह चमत्कार-सा लगता है कि शादी के वर्षों बाद भी सास-श्वसुर द्वारा बहू की प्रशंसा के गीत गाये जा रहे हैं। अधिकांश तो सासों को बहुओं के दुखोने रोते ही देखा जाता है। जहाँ दो सासें मिली नहीं कि बहुओं के कारनामों के चर्चे छिड़ जाते हैं और जहाँ दो बहुएँ मिली नहीं कि सासों के अत्याचारों की कहानियाँ सुनने को मिलती हैं। यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जिसके जिन गुणों की प्रशंसा की जाती है, उसके उन गुणों का विकास तीव्र गति से होने लगता है, ज्योत्स्ना के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। उसमें कुछ विशेषतायें तो माँ से प्रशंसा पाकर बचपन में ही विकसित हो चुकी थी, बहुत कुछ बाद में ज्यों-ज्यों उसकी प्रशंसा हुई त्यों-त्यों उसके गुणों में विकास होता गया और अब वह न केवल परिवार में, मुहल्ले में बल्कि पूरे समाज में, नगर में और देश-विदेश में भी प्रशंसा की पात्र बन गई। गणतंत्र और ज्योत्स्ना की जोड़ी कद-काठी, हेल्थ-हाईट और रंगरूप में पूरे परिवार से बेजोड़ है। ऐसे जोड़े विरले ही होते हैं। वे जहाँ कहीं भी खड़े होते, लोगों की निगाहें बरबस उन पर अटक जाती हैं। उनका बाह्य व्यक्तित्व जैसा आकर्षक है, अन्तरंग में भी वे वैसे ही सुशील, सज्जन और निश्छल हैं। धार्मिक आचरण के प्रति भी उनका अच्छा आकर्षण है। गणतंत्र की प्रकृति बहुत कम बोलने की है, उसके चेहरे पर ऐसा भोलापन झलकता है कि उससे यह अनुमान नहीं लगता कि इसका स्वभाव क्रोधी भी है। जबकि ज्योत्स्ना का जीवनसाथी बनने के पहले वह बहुत तेज था। उसे बात-बात पर क्रोध आ जाता था। ज्योत्स्ना के (31)
SR No.008361
Book TitleNeev ka Patthar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size233 KB
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