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________________ वस्तु स्वातंत्र्य और अहिंसा ४३ वस्तु स्वातंत्र्य और अहिंसा प्रतिदिन की भाँति आज भी माँ समता श्री का प्रवचन प्रातः ठीक ८.१५ पर प्रारंभ हुआ। विराग और चेतना को श्रोताओं की प्रथम पंक्ति में बैठे और प्रवचन की प्रतीक्षा करते देख माँ गौरवान्वित तो हुई ही, मन ही मन प्रसन्न भी हुई; क्योंकि प्रायः होता यह है कि दुनिया की दृष्टि में भगवान जैसा महत्व होने पर भी बेटा-बहू और घर-परिवार वालों को घर के विद्वान वक्ता की महिमा नहीं आती। यद्यपि इसमें मात्र परिवार वालों का ही दोष नहीं होता, किन्हीं-किन्हीं पारिवारिक धर्मप्रवक्ताओं का दुहरा व्यक्तित्व भी इसमें कारण होता है; वे घर-परिवार में कुछ और होते हैं और धर्मक्षेत्र में कुछ और । परन्तु समता श्री उन लोगों में नहीं है उनका हृदयपूर्ण पवित्र है, वे जो कुछ करती हैं, वह सब स्वान्त-सुखाय ही करती हैं तथा जो कुछ कहती हैं, वह सब पवित्र भावना से परहिताय ही कहती हैं, उसमें उनका किंचित भी निजी (व्यक्तिगत)कोई लौकिक स्वार्थ नहीं होता। यों समताश्री अपने बेटे-बहू को भी, बेटे-बहू की दृष्टि से कम और आत्मार्थी के नजरिया से अधिक देखती हैं। अतः उनके लक्ष्य से प्रवचन करने पर भी अन्य सभी श्रोता हर्षित ही होते हैं। विराग की पैनी बुद्धि से उद्भूत शंकाओं के समाधानों से सभी लोग लाभान्वित भी बहुत होते हैं। “वस्तु स्वातंत्र्य के परिप्रेक्ष्य में अहिंसा की स्थिति कैसे संभव है?” इस प्रश्न के समाधान के लिए विराग और चेतना आतुर हैं। वे सही-सही समाधान पाने के प्रति पूर्ण आश्वस्त हैं। उन्हें विश्वास है कि आज उनकी बहुत दिनों से उलझी पहेली सुलझेगी, उन्हें उनकी शंकाओं का समाधान मिल ही जायेगा। समता श्री ने प्रवचन प्रारंभ करते हुए कहा - "आज ‘अहिंसा परमोधर्मः' का नारा विश्व विख्यात है। भगवान महावीर के नाम से तो अहिंसा का नाम जुड़ा ही हुआ है, महात्मा गाँधी ने भी अहिंसा के नाम पर ही भारत को आजाद कराया है। इसकारण आज विश्व में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जो अहिंसा शब्द से परिचित न हो। वैसे भी हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह संग्रह को सारी दुनिया पाप मानती है और अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह को पुण्य व धर्म मानती है। रामायण, महाभारत, गीता जैसे जगप्रसिद्ध ग्रन्थों में भी इन पुण्यपाप रूप क्रियाओं का कथन होने से सारा जगत इनसे सामान्यतः सुपरिचित है। ___ हिंसा में प्रवृत्त मानव भी सिद्धान्त रूप से अहिंसा को ही अच्छा मानते हैं; यह उनके आत्म कल्याण के लिए शुभ लक्षण है। जिसे आज वे सिद्धान्त रूप से सही मानते हैं, उन्हें कभी जीवन में अपना भी सकते हैं। अतः हिंसा-अहिंसा के स्वरूप और इनके हेयोपादेयता को चर्चित रखना भी अति आवश्यक है। कल विराग का प्रश्न था कि- 'वस्तुस्वातंत्र्य के परिप्रेक्ष्य में अहिंसा का अस्तित्व कैसे संभव है? अतः आज इसी विषय पर विचार करेंगे।' विराग की मूल समस्या यह है कि - 'जब वस्तु स्वातंत्र्य के सिद्धान्त के अनुसार विश्व के समस्त द्रव्य-गुण एवं उनमें प्रति समय परिणमित होने वाली पर्यायें पूर्ण स्वतंत्र हैं, कोई भी द्रव्य-गुण-पर्यायें, किसी अन्य द्रव्य-गुण-पर्यायों के कर्ता-धर्ता नहीं है और कोई भी द्रव्य, अन्य द्रव्य के परिणमन में किंचित् मात्र भी हस्तक्षेप नहीं करता।। सर्वज्ञता के आधार पर आगम भी इसी बात का समर्थन करता है कि (22)
SR No.008361
Book TitleNeev ka Patthar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size233 KB
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