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________________ नींव का पत्थर पूर्वाग्रह के झाड़ की जड़ें गहरी नहीं होती अज्ञानी जीव वस्तुस्वातंत्र्य के ज्ञान से अनभिज्ञ होने से अपनी सुखशान्ति को देहाधीन, कर्माधीन और सुखद संयोगों की अनुकूलता में खोजता है। इसकारण स्वतंत्र होते हुए भी ज्ञानात्मक स्वतंत्रता नहीं है। किसी ने कहा भी है - सबके पल्ले लाल, लाल बिना कोई नहीं। यातें भयो कंगाल, गाँठ खोल देखी नहीं।। यह कहावत तब की है जब लोग बहुमूल्य हीरे जवाहरातों को धोती के पल्ले में गाँठ लगाकर बाँधकर रखते थे। उस बात को कवि ने उक्त दोहे में कहा है कि - सबके पल्ले में बहुमूल्य लाल बंधे हैं, अर्थात् सभी लखपति हैं, परन्तु उन्होंने अपने पल्ले की गाँठ खोल कर ही नहीं देखी, यही उनकी कंगाली का कारण है। हीरों से भी अधिक अमूल्य, पूर्ण स्वतंत्र, स्वावलम्बी, स्वसंचालित एवं स्वयं सुख स्वभावी होते हुए स्वयं को नहीं जाना, अपने को नहीं खोजा, देहादि में ही अपने अस्तित्व को मानता-जानता रहा है। जहाँ सुख नहीं वहाँ सुख ढूँढ़ा, जहाँ हीरे नहीं, वहाँ हीरे खोजे।" माँ समता श्री ने आगे कहा - "इस तरह अज्ञानी जन अपने उस मौलिक स्वरूप से अपरिचित हैं, अनभिज्ञ हैं, इस कारण जो स्वाभाविक कार्य-कारण व्यवस्था है, सहज निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध हैं, उन्हें वैसा न मानकर उनमें अपना एकत्व एवं कर्तृत्व मानते रहे हैं। और बिना वजह हर्ष-विषाद करते हैं, सुखी-दुःखी होते हैं और राग-द्वेष में पड़कर अपना संसार बढाते हैं। उन्हें अपने ज्ञान में उस स्वतंत्रता का पता नहीं होने से स्वयं पराधीन हो रहे हैं - ऐसी स्वतंत्रता के एक नहीं अनेक उदाहरण पुराणों में और लोक में भी भरे पड़े हैं। कहा जाता है कि तोता पकड़ने वाले अपने ही आंगन में एक नलनी पिरोई रस्सी बाँधते हैं, रस्सी के नीचे खाने का दाना भी रख देते है, तोता आता है, नलनी पर बैठता है, उसके बैठते ही नलनी घूमती है तोता औंधा लटक जाता है. वह घबराहट में अपने उड़ने की चाल भूल जाता है और बहेलिये द्वारा पकड लिया जाता है। इसी तरह यह जीव अपनी स्वतंत्रता की चाल भूला हुआ है। कहा भी है - "अपनी सुध भूल आप, आप दुःख उ पाया । ज्यों शुक नभ चाल विसरि नलनी लटकायो।। इस तरह ज्ञानात्मक स्वतंत्रता के अभाव में जीव दुःखी हैं। इसी संदर्भ में एक उदाहरण रेगिस्तानी ऊँटों का है - सौ ऊँटों का काफिला लिए रेबारी (काफिले का मालिक) शहर की ओर जा रहा था। रेबारी के पास रास्ते में पड़ाव पर ऊँटों को बाँधने के लिए १०० खूटी व रस्सियाँ थीं।" रास्ते में एक खूटी व रस्सी खो गई। ९९ रस्सियों से ९९ ऊँट तो पड़ाव पर बाँध दिये, किन्तु १००वें ऊँट को बाँधने की समस्या थी। रेबारी को उपाय सूझा और उसने उस ऊँट के पास जाकर ठक-ठक की आवाज की और उसके गले में हाथ फेरकर उसे बँधने का भ्रम पैदा कर दिया। वह ऊँट अपने को बँधा मानकर बैठ गया। सवेरे ९९ ऊँट खोल दिए और वे चल भी दिये; परन्तु वह सौवाँ ऊँट उठा ही नहीं। उसे भ्रम था कि मैं तो बँधा हूँ, क्योंकि मालिक ने खोला ही नहीं था, मालिक भी समझ गया कि मैंने बेचारे को खोला ही नहीं तो यह उठेगा कैसे? वह ऊँट के पास गया और जैसे बाँधने की क्रिया की थी, वैसे ही खोलने की प्रक्रिया की तो ऊँट तुरंत उठा और चल दिया।" माँ के इस मार्मिक संदेश को सुनकर ज्योत्स्ना बहुत प्रसन्न हुई। बचपन में सखी-सहेलियों और भाभियों द्वारा की गई भ्रमोत्पादक बातों से उसके मन में सास, पति और ससुरालवालों के प्रति पूर्वाग्रह से जो भ्रम उत्पन्न हो गया था, वह माँ के द्वारा वस्तु स्वातंत्र्य के सिद्धान्त को समझानेसे तथा ससुराल पक्ष की मनोवैज्ञानिक विचाराधारा का ज्ञान कराने से समाप्त हो गया; क्योंकि भ्रम रूप झाड़ की जड़ें तो पत्थर पर ही होती हैं न। ___इसी तरह जबतक संसारी जीव स्वतंत्र होते हुए भी अपनी मान्यता में स्वयं को बंधन रूप मानेगा तब तक मुक्त नहीं हो सकता। अतः हम वस्तुस्वातंत्र्य के सिद्धान्त के द्वारा अपनी स्वतंत्रता का ज्ञान करें और सुखी हों। (18)
SR No.008361
Book TitleNeev ka Patthar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size233 KB
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