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________________ वही ढाक के तीन पात प्रखर प्रतिभा के धनी विराग ने जब माँ के सामने धनार्जन में महारत हासिल करने के लिए विशेष अध्ययन हेतु परदेश जाने की इच्छा व्यक्त की तो उसकी माँ ने उसे परदेश जाने से साफ मना कर दिया; क्योंकि वह जानती थी कि इस भोग प्रधान भौतिक युग में यदि पैसा जरूरत से ज्यादा हो जाय तो सन्मार्ग से भटक जाने की संभावनायें बढ़ सकती हैं; इसकी वह स्वयं भी भुक्तभोगी थी; फिर परदेश की तो बात ही निराली है। वहाँ का तो वातावरण ही भोग-प्रधान है। अतः वहाँ जाने की अनुमति देना तो संतान को कुएँ में धकेलने से भी बुरा है। वस्तुतः विराग को अपने जन्म के पूर्व पिता के साथ घटी अघट घटनाओं की जानकारी नहीं थी और उसकी माँ उसे पिता का पूर्व इतिहास बताना भी नहीं चाहती थी; परन्तु वह अपने बेटे को वैसे ही वातावरण में जाने की अनुमति भी कैसे दे सकती थी ? अतः पहले तो उसने स्पष्ट मना ही कर दिया; परन्तु जब माँ ने उसकी परदेश जाने की तीव्र इच्छा, अति उत्साह और विशेष आग्रह देखा तो उसने वस्तु स्वातंत्र्य के सिद्धान्त को स्मरण करते हुए और विराग की होनहार का विचार कर उसे अध्ययन हेतु परदेश जाने की अनुमति दे दी। साथ ही अपने सदाचार को सुरक्षित रखने के लिए एक बार पुनः सचेत कर दिया। लोक में बालहठ, त्रियाहठ और हमीर हठ - ये हठे प्रसिद्ध हैं; परन्तु समताश्री उन त्रियाओं में नहीं थी, वह विवेकशील थी, समय पर मुड़ना भी अच्छी तरह जानती थी। अतः उसने विराग को नहीं रोका। ____ माँ समता को उसके अबतक के आचरण को देखकर ही उसके चरित्र पर पूर्ण विश्वास था तथा उसने विराग को पालने में झुलाते समय (12)
SR No.008361
Book TitleNeev ka Patthar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size233 KB
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