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________________ परिशिष्ट-१ योगसार-प्रश्नोत्तरी प्रश्न - १. सर्वप्रथम यह बताइए कि जैन-साहित्य में 'योगसार' नाम के प्रमुख ग्रन्थ कितने मिलते हैं? कौन-कौन? उत्तर - जैन-साहित्य में योगसार' नाम के तीन ग्रन्थ मिलते हैं :- (i) मुनिराज योगीन्दु द्वारा रचित योगसार, (ii) आचार्य अमितगति द्वारा रचित योगसार प्राभृत, (iii) भट्टारक श्रुतकीर्ति द्वारा रचित योगसार। प्रश्न -२. प्रस्तुत 'योगसार' की रचना कब और किसने की? उत्तर - प्रस्तुत 'योगसार' की रचना आज से लगभग १३०० वर्ष पूर्व मुनिराज योगीन्दु देव ने की है। प्रश्न - ३. मुनिराज योगीन्दु देव के विषय में आप क्या जानते हैं? उत्तर - मुनिराज योगीन्दु देव जिन-अध्यात्म के उत्कृष्ट ज्ञाता थे। वे अत्यन्त सरल-सुबोध ढंग से आत्मकल्याण का मार्ग समझाने में समर्थ थे। वे आज से लगभग १३०० वर्ष पूर्व इसी पवित्र भारतभूमि पर विचरण करते थे। उन्होंने 'योगसार' के अतिरिक्त एक 'परमात्मप्रकाश' नाम के श्रेष्ठ ग्रन्थ की भी रचना की है। प्रश्न -४. 'योगसार' की रचना किस भाषा में हई है? उत्तर - योगसार' की रचना अपभ्रंश भाषा में हुई है। प्रश्न -५. अपभ्रंश भाषा के सम्बन्ध में आप क्या जानते हैं? उत्तर- अपभ्रंश भाषा प्राकृत और संस्कृत जैसी ही एक महत्त्वपूर्ण भाषा है। उसका समय सामान्यतया ५वीं शती से १५वीं शती तक माना जाता है। अपभ्रंश भाषा को हम संस्कृत और हिन्दी के बीच की महत्त्वपूर्ण कड़ी कह सकते हैं। यदि संस्कृत भाषा हिन्दी भाषा की नानी है तो अपभ्रंश भाषा उसकी माँ है। प्रश्न -६. 'योगसार' की रचना मुख्यतः किस छन्द में हुई है और उनकी कुल संख्या कितनी है? जोगसारु (योगसार) उत्तर - 'योगसार' की रचना मुख्यतः 'दोहा' (दूहा) छन्द में हुई है और उनकी कुल संख्या १०८ है। इनमें ३ सोरठे (सोरठी दूहा) और १ चौपाई (चउपदी दूहा) भी सम्मिलित है। प्रश्न - ७. 'योगसार' पर अब तक क्या-क्या साहित्यिक कार्य हुए हैं? सूची प्रस्तुत कीजिए? उत्तर - (क) हिन्दी-व्याख्या : (i) कविवर बुधजनजी (योगसार भाषा) (ii) पं.पन्नालालचौधरी(योगसार-वचनिका) (iii) ब्र. शीतलप्रसादजी (योगसार टीका) (ख) संपादन : (i) पण्डित पन्नालाल सोनी (सन् १९२२) (ii) डॉ. ए.एन. उपाध्ये (सन् १९३७) (ग) हिन्दी-गद्यानुवाद : (i) डॉ. जगदीशचन्द्र शास्त्री (ii) डॉ. कमलेश कुमार जैन (iii) डॉ. वीरसागर जैन (घ) संपादन-अनुवाद : (i) डॉ.कमलेश कुमार जैन (ii) डॉ. वीरसागर जैन (ड) हिन्दी-पद्यानुवाद : (i) आचार्य विद्यासागरजी ___(ii) मुंशी नाथूराम (iii) डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल (च) योगसार-चयनिकाः(i) डॉ. कमलचन्द सोगानी (छ) योगसार-प्रश्नोत्तरी:(ii) डॉ. वीरसागर जैन प्रश्न - ८. 'योगसार' के नामकरण की सार्थकता पर प्रकाश डालिए? उत्तर - (क) जो जीवन का सार है, ऐसे योग का इसमें वर्णन है, इसलिए इसका योगसार' नाम सार्थक है। (ख) जो सम्पूर्ण जिनवाणी का सार है, ऐसे योग का वर्णन है, इसलिए भी इसका 'योगसार' नाम सार्थक है। (ग) इसमें सार अर्थात् श्रेष्ठ या उत्तम योग का वर्णन है, इसलिए भी इसका योगसार' नाम सार्थक है।
SR No.008355
Book TitleJogsaru Yogsar
Original Sutra AuthorYogindudev
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages33
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size129 KB
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