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________________ १५६ कंस की आज्ञा पाकर अखाड़े में बारी-बारी से अन्य अनेक मल्ल जंगली भैंसों के समान अहंकारी ह हो मल्लयुद्ध करने लगे। जब साधारण मल्लों का युद्ध हो चुका तब कंस ने कृष्ण से लड़ने के लिए उस रि चाणूरमल्ल को आज्ञा दी जो पर्वत की विशाल दीवाल के समान विस्तृत वक्षःस्थल वाला था और जिसने अपने मजबूत भुजयंत्र से बड़े-बड़े अहंकारी मल्लों को पछाड़ गिराया था। फिर क्या था, स्वयं श्रीकृष्ण और चाणूरमल्ल परस्पर मल्ल युद्ध में जुट गये । वं श क 55 था सिंह के समान दोनों ने पैर जमा कर मुट्ठियाँ बाँधकर सर्वप्रथम मुष्टियुद्ध प्रारंभ किया, परस्पर मुक्केबाजी | की। बज्र के समान कठोर मुट्ठि वाला मुष्टिक मल्ल पीछे से कृष्ण पर मुट्ठि का प्रहार करना ही चाहता था कि इतने में बलभद्र ने शीघ्रता से हस्तक्षेप करते हुए कहा - बस, बस ! ठहर ! यह कहते हुए मुँह पर और शिर पर जोर से मुक्का लगाकर उसे प्राण रहित कर दिया। इधर सिंह के समान शक्ति के धारक एवं मनोहर | हुंकार से युक्त श्रीकृष्ण ने भी चारुण मल्ल को, जो श्रीकृष्ण के शरीर से दूना था, उसे अपने वक्षस्थल से लगाकर भुजाओं के द्वारा इतने जोर से दबाया कि रुधिर की धारा बहने लगी और वह अल्पकाल में ही निष्प्राण हो गया । ज्ञातव्य है कि श्रीकृष्ण और बलभद्र में एक हजार सिंह और हाथियों के बराबर बल था । इसप्रकार अखाड़े में जब उन्होंने कंस के दोनों प्रधान मल्लों को मार डाला तो कंस क्रोधावेश में आकर अपने विवेक और क्षमता को भूलकर स्वयं हाथ में पैनी तलवार लेकर उनकी ओर चला। उसके चलते ही समस्त अखाड़े | का जनसमूह समुद्र की भाँति जोरदार शब्द करता हुआ उठ खड़ा हुआ। कृष्ण ने सामने आते हुए कंस के हाथ से तलवार छीन ली और मजबूती से उसके बाल पकड़ उसे पृथ्वी पर पछाड़ कर मार डाला । ठीक ही है - बुद्धि होनहार का ही अनुसरण करती है। लोक में भी यह कहावत प्रसिद्ध है कि - 'जब सियार की मौत आती है तो वह शहर की ओर भागता है।' यही कंस के साथ हुआ । कंस की सेना सामने आयी तो उसे देख बलराम की भौहें टेढ़ी हो गईं। उन्होंने उसी समय मंच का एक श्री कृ ष्ण स में घ र्ष १५
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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