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________________ देखो, इस कंस ने गर्भाधान के समय से लेकर शत्रु को मारने के जो नाना साधन जुटाये, वह उससे सचमुच | अक्षम्य अपराध हुआ है, महापाप है। इसका कठोर दण्ड उसे मिलना ही चाहिए। जब कृष्ण ने बड़े भाई बलभद्र से समस्त हरिवंश, पिता, गुरु, बन्धु तथा भाइयों के कुशल समाचार जाने तो वे अत्यधिक आनन्द से प्रफुल्लित हो गये। तत्पश्चात् जन्मजात हितबुद्धि से उत्पन्न स्नेह से जिनके अन्तःकरण परस्पर मिल रहे थे, जलक्रीड़ा में जो अत्यन्त चतुर थे, ऐसे दोनों भाइयों ने यमुना नदी में स्नान किया। तदनन्तर दोनों भाई उन्हीं गोपों के साथ-साथ अपने घर आ गये और सरस भोजन किया। ___ अपने मन में कंस को युद्ध में परास्त करने का निश्चय कर चंचल चरणों के आघात् से पृथ्वी को कम्पित || कर रहे थे - ऐसे वे दोनों भाई भयानक मल्लों के वेग से युक्त गोपों के साथ शीघ्र ही मथुरा की ओर चल पड़े। मार्ग में कंस के भक्त एक असुर ने नाग का रूप धारण किया, दूसरे ने कटु शब्द करने वाले गधा का और तीसरे ने दुष्ट घोड़े का रूप बनाया तथा नगर प्रवेश में विघ्न डालते हुए सबके सब मुँह फाड़कर सामने आये, परन्तु श्रीकृष्ण ने सबको मार भगाया। मथुरा नगरी में प्रवेश करते हुए दोनों भाई - कृष्ण-बलदेव जब कंस के द्वार पर पहुँचे तो कंस की आज्ञा से उन पर एक साथ दो उन्मत्त हाथी छोड़ दिए गये। उन चिंध्याड़ते हुए मदोन्मत्त हाथियों के आक्रमण से वे घबराये नहीं, प्रत्युतर उन्होंने हाथियों का सामना किया। हाथियों को परास्त कर दोनों भाई नगर में प्रविष्ट हुए। वहाँ मल्लयुद्ध की रंगभूमि में पहुँचते ही बलभद्र ने कृष्ण से वहाँ उपस्थित लोगों का परिचय कराया। “यह कंस है, ये जरासन्ध के आदमी हैं, और ये अपनेअपने पुत्रों सहित समुद्रविजय आदि दशों भाई हैं।"
SR No.008352
Book TitleHarivanshkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages297
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size794 KB
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