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________________ चैतन्य चमत्कार है और ज्ञातापन की बुद्धि प्रगट हो जाती है - यह उसका फल है। यदि कर्ताबुद्धि न उड़े तो समझना चाहिए कि अभी उसकी समझ में क्रमबद्धपर्याय आई नहीं है।" प्रश्न : "अभी आपने फरमाया कि क्रमबद्धपर्याय का निर्णय पर्याय पर दृष्टि रखने से नहीं होगा, त्रिकाली ज्ञायकस्वभाव पर दृष्टि रखने से होगा तो फिर क्रमबद्धपर्याय के निर्णय की जरूरत ही क्या है ? बस हम तो ज्ञायकस्वभाव का आश्रय ले लें न?" उत्तर : "ले सकते हो तो ले लो न, कौन मना करता है ? पर विकल्प में पर्याय की स्वतन्त्रता का निर्णय हए बिना पयार्य पर से दृष्टि हटती कहाँ है ? और ज्ञायकस्वभाव पर दृष्टि जाये बिना क्रमबद्धपर्याय का भी सच्चा निर्णय नहीं होता है। तथा ज्ञायकस्वभाव पर दष्टि जाने पर क्रमबद्धपर्याय का निर्णय हो ही जाता है। अतः क्रमबद्धपयार्य के निर्णय नहीं करने की बात कहाँ रही? ज्ञायकस्वभाव पर दृष्टि जाने के पहिले आगम व युक्ति के आधार पर विकल्पात्मक निर्णय तो हो सकता है, सच्चा नहीं, पर विकल्पात्मक निर्णय भी तो जरूरी है, उसके बिना पर्याय की महिमा हटती ही नहीं, पर्याय से दृष्टि हटती ही नहीं।" प्रश्न : "तो इसका मतलब यह हुआ कि पहिले आगम और युक्ति के आधार पर विकल्पात्मक ज्ञान में क्रमबद्धपर्याय का निर्णय करें, फिर जब हमारी दृष्टि पर्याय क्रमबद्धपर्याय पर से हटकर ज्ञायकस्वभाव पर जाएगी, स्थिर होगी तब क्रमबद्धपर्याय की सच्ची श्रद्धा होगी?" उत्तर : “हाँ, भाई ! बात तो ऐसी ही है।" प्रश्न : “आगम के आधार पर क्रमबद्धपर्याय का निर्णय करें - यह बात तो ठीक, पर लोगों का तो यह कहना है कि शास्त्रों में तो कहीं क्रमबद्धपर्याय आई नहीं है - यह तो आपने नई निकाली है।" उत्तर : “नहीं भाई ! ऐसी बात नहीं है। शास्त्रों में अनेक स्थानों पर क्रमबद्ध की बात आती है। समयसार के सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार में है। वहाँ आत्मख्याति टीका में 'क्रमनियमित' ऐसा मूल पाठ है।" प्रश्न : "क्रमनियमित का अर्थ क्या है?" उत्तर : “क्रमनियमित शब्द में क्रम अर्थात् क्रमसर (नंबरवार) तथा नियमित अर्थात् निश्चित । जिस समय जो पर्याय आनेवाली है, वही आएगी, उसमें फेरफार नहीं हो सकता।" प्रश्न : “समयसार में तो है, पर किसी और भी शास्त्र में है या नहीं? समयसार तो आपका ही शास्त्र है।" उत्तर : "लो, यह अच्छी बात कही। समयसार हमारा कैसे है ? हम तो उसे पढ़ते हैं, है तो वह परमपूज्य दिगम्बराचार्य कुन्दकुन्ददेव का। प्रवचनसार में भी गाथा ९९, १००,१०१ व १०२ में (31)
SR No.008346
Book TitleChaitanya Chamatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size204 KB
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