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________________ ૪૪ चैतन्य चमत्कार अर्थात् सम्यग्दर्शन हुए बिना संयम अर्थात् सम्यक्चारित्र नहीं होता। तो क्या मद्य-मांस-मधु का त्याग भी सम्यग्दर्शन होने के बाद होगा ?" अपनी बात को स्पष्ट करते हुए वे आगे बोले "भाई ! इन चीजों का सेवन तो नामधारी जैन को भी नहीं होना चाहिए। प्रत्येक जैनमात्र को सप्त व्यसनों का त्याग और अष्ट मूलगुणों का धारण सर्वप्रथम होना चाहिए। - जरा विचार तो करो ! क्या शराबी कबाबी को आत्मा का अनुभव हो सकता है ? तुम आत्मा के अनुभव और सम्यग्दर्शन की बात करते हो, वह तो जिनवाणी सुनने का भी पात्र नहीं है।" निरन्तर अध्ययन के लिए समीप रखे हुए शास्त्रों में से पुरुषार्थसिद्ध्युपाय उठकार उसमें से ७४वाँ छन्द निकालकर दिखाते हुए बोले F य I "लो देखो, साफ-साफ लिखा है - अष्टानिष्ट दुस्तरदुरितायतनान्यमूनि प रि जिनधर्मदेशनाया भवन्ति पात्राणि शुद्धधियः ।। ७४ ।। दुःखदायक, दुस्तर और पाप के स्थान ऐसे आठ पदार्थों का परित्याग करके निर्मल बुद्धिवाले पुरुष जैनधर्म के उपदेश को सुनने के पात्र होते हैं।" व (24) वह तो नाममात्र का भी जैन नहीं और रात्रि भोजन ?" मेरे द्वारा यह कहे जाने पर बोले ** - "रात्रि भोजन में मांस भक्षण का दोष है। रात्रि में अनेक कीड़े-मकोड़े भोजन में पड़ जाते हैं। अथाना अचार भी नहीं खाना चाहिए, उसमें भी त्रसजीव पड़ जाते हैं। अनछना पानी भी काम में नहीं लेना चाहिए। अनन्तकाय जमीकन्द, अमर्यादित मक्खन आदि का सेवन करना भी ठीक नहीं । हमने तो ६९ वर्षों से रात्रि में पानी की बूँद भी नहीं ली है । विक्रम सं. १९६५-६६ से अचार भी नहीं खाया है। अनछना पानी पीना तो बहुत दूर, काम में भी नहीं लेते। जमीकन्द आदि खाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।” “और कुछ ?” “और कुछ क्या ? चरणानुयोग के शास्त्रों में जो आचरण सामान्य जैनी के लिए बताया गया है, उसका पालन प्रत्येक जैन को अवश्य करना चाहिए।" "यदि ऐसी बात है तो आप यह सब कहते क्यों नहीं हैं ?" "कह तो रहे हैं तुमसे, और कैसे कहना होता है ?" "हमसे तो कह रहे हैं, पर प्रवचन में तो नहीं कहते ? " " प्रवचनों में भी कहते हैं। अभी बैंगलौर, हैदराबाद,
SR No.008346
Book TitleChaitanya Chamatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size204 KB
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