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________________ भावपाहुड २२९ की है। भावार्थ - यहाँ और तो पूर्वोक्त प्रकार जानना, परन्तु ‘सकल' विशेषण का यह आशय है कि मोक्षमार्ग की प्रवृत्ति करने के जो उपदेश हैं, वह वचन के प्रवर्ते बिना नहीं होते हैं और वचन की प्रवृत्ति शरीर बिना नहीं होती है, इसलिए अरहंत का आयु कर्म के उदय से शरीर सहित अवस्थान रहता है और सुस्वर आदि नामकर्म के उदय से वचन की प्रवृत्ति होती है। इस तरह अनेक जीवों का कल्याण करनेवाला उपदेश होता रहता है। अन्यमतियों के ऐसा अवस्थान (ऐसी स्थिति) परमात्मा के संभव नहीं है, इसलिए उपदेश की प्रवृत्ति नहीं बनती है, तब मोक्षमार्ग का उपदेश भी नहीं बनता है, इसप्रकार जानना चाहिए ।।१५२।। आगे कहते हैं कि जो ऐसे अरहंत जिनेश्वर के चरणों में नमस्कार करते हैं, वे संसार की जन्मरूप बेल को काटते हैं - जिणवरचरणंबुरुहं णमंति जे परमभत्तिराएण। ते जम्मवेल्लिमूलं खणंति वरभावसत्थेण ।।१५३।। जिनवरचरणांबुरुहं नमंतिये परमभक्तिरागेण। ते जन्मवल्लीमूलं खनंति वरभावशस्त्रेण ।।१५३।। अर्थ – जो पुरुष परम भक्ति अनुराग से जिनवर के चरणकमलों को नमस्कार करते हैं, वे श्रेष्ठभावरूप शस्त्र' से जन्म अर्थात् संसाररूपी बेल के मूल जो मिथ्यात्व आदि कर्म, उसको नष्ट कर डालते हैं (खोद डालते हैं)। ___भावार्थ - अपनी श्रद्धा-रुचि-प्रतीति से जो जिनेश्वरदेव को नमस्कार करता है, उनके सत्यार्थस्वरूप सर्वज्ञ वीतरागपने को जानकर भक्ति के अनुराग से नमस्कार करता है, तब ज्ञात होता है कि सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का यह चिह्न है, इसलिए मालूम होता है कि इसके मिथ्यात्व का नाश हो गया, अब आगामी संसार की वृद्धि इसके नहीं होगी, इसप्रकार बताया है।।१५३।। आगे कहते हैं कि जो जिनसम्यक्त्व को प्राप्त पुरुष है सो वह आगामी कर्म से लिप्त नहीं होता है - १. पाठान्तरः - चिय! २. पाठान्तरः - ज्ञान् अपि । सब शील संयम गुण सहित जो उन्हें हम मुनिवर कहें। बह दोष के आवास जो हैं अरे श्रावक सम न वे ।।१५५।।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
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