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________________ २३० जह सलिलेण ण लिप्पड़ कमलिणिपत्तं स ह T व प य ड ए I तह भावेण ण लिप्पड़ कसायविसएहिं सप्पुरिसो । । १५४ । । यथा सलिलेन न लिप्यते कमलिनीपत्र स्वभावप्रकृत्या । तथा भावेन न लिप्यते कषायविषयैः सत्पुरुषः । । १५४ । । अष्टपाहुड अर्थ - जैसे कमलिनी का पत्र अपने स्वभाव से ही जल से लिप्त नहीं होता है, वैसे ही सम्यग्दृष्टि सत् पुरुष है, वह अपने भाव ही क्रोधादिक कषाय और इन्द्रियों के विषयों से लिप्त नहीं होता है । भावार्थ - सम्यग्दृष्टि पुरुष के मिथ्यात्व और अनन्तानुबंधी कषाय का तो सर्वथा अभाव ही है, अन्य कषायों का यथासंभव अभाव है । मिथ्यात्व अनन्तानुबंधी के अभाव से ऐसा भाव होता है जो परद्रव्यमात्र के कर्तृत्व की बुद्धि तो नहीं है, परन्तु शेष कषायों के उदय से कुछ राग-द्वेष होता है, उसको कर्म के उदय के निमित्त से हुए जानता है, इसलिए उसमें भी कर्तृत्वबुद्धि नहीं है, तो भी उन भावों को रोग के समान हुए जानकर अच्छा नहीं समझता है। इसप्रकार अपने भावों से ही कषाय-विषयों से प्रीति बुद्धि नहीं है, इसलिए उनसे लिप्त नहीं होता है, जलकमलवत् निर्लेप रहता है। इससे आगामी कर्म का बन्ध नहीं होता है, संसार की वृद्धि नहीं होती है, ऐसा आशय है।।१५४।। आगे कहते हैं कि जो पूर्वोक्त भाव सहित सम्यग्दृष्टि सत्पुरुष हैं, वे ही सकल शील संयमादि गुणों से संयुक्त हैं, अन्य नहीं हैं. - ते 'च्चिय भणामि हं जे सयलकलासीलसंजमगुणेहिं । बहुदोसाणावासो सुमलिणचित्तो ण सावयसमो सो । । १५५ । । 'तानेव च भणामि ये सकलकलाशीलसंयमगुणैः । बहुदोषाणामावास: सुमलिनचित्तः न श्रावकसम: स: ।। १५५ । । जीते जिन्होंने प्रबल दुर्द्धर अर अजेय कषाय भट । रे क्षमादम तलवार से वे धीर हैं वे वीर हैं ।। १५६ ।। विषय सागर में पड़े भवि ज्ञान-दर्शन करों से । जिनने उतारे पार जग में धन्य हैं भगवंत वे ।। १५७ ।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
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