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________________ भावपाहुड १५७ महुपिंगो णाम मुणी देहाहारादिचित्तवावारो। सवणत्तणं ण पत्तो णियाणमित्तेण भवियणुय ।।४५।। मधुपिंगो नाम मुनिः देहाहारादित्यक्तव्यापारः। श्रमणत्वं न प्राप्त: निदानमात्रेण भव्यनुत! ।।४५।। अर्थ - मधुपिंगल नाम का मुनि कैसा हुआ? देह आहारादि में व्यापार छोड़कर भी निदानमात्र से भावश्रमणपने को प्राप्त नहीं हुआ उसको भव्यजीवों से नमने योग्य मुनि तू देख। ____ भावार्थ - मधुपिंगल नाम के मुनि की कथा पुराण में है, उसका संक्षेप ऐसे है - इस भरतक्षेत्र के सुरम्यदेश में पोदनापुर का राजा तृणपिंगल का पुत्र मधुपिंगल था। वह चारणयुगलनगर के राजा सुयोधन की पुत्री सुलसा के स्वयंवर में आया था। वहीं साकेतापुरी राजा सगर आया था। सगर के मंत्री ने मधु पिंगल को कपट से नया सामुद्रिक शास्त्र बनाकर दोषी बताया कि इसके नेत्र पिंगल हैं (माँजरा है) जो कन्या इसको वरे सो मरण को प्राप्त हो । तब कन्या ने सगर के गले में वरमाला पहिना दी। मधुपिंगल का वरण नहीं किया, तब मधुपिंगल ने विरक्त होकर दीक्षा ले ली। फिर कारण पाकर सगर के मंत्री के कपट को जानकर क्रोध से निदान किया कि मेरे तप का फल यह हो “अगले जन्म में सगर के कुल को निर्मूल करूँ" उसके पीछे मधुपिंगल मरकर महाकालासुर नाम का असुर देव हआ तब सगर को मंत्री सहित मारने का उपाय सोचने लगा। इसको क्षीरकदम्ब ब्राह्मण का पुत्र पापी पर्वत मिला, तब उसको पशुओं की हिंसारूप यज्ञ का सहायक बन ऐसा कहा । सगर राजा को यज्ञ का उपदेश करके यज्ञ करा, तेरे यज्ञ का मैं सहायक बनूँगा। तब पर्वत ने सगर से यज्ञ कराया, पशु होमे । उस पाप से सगर सातवें नरक गया और कालासुर सहायक बना सो यज्ञ करनेवालों को स्वर्ग जाते दिखाये । ऐसे मधुपिंगल नामक मुनि ने निदान से महाकालासुर बनकर महापाप कमाया, इसलिए आचार्य कहते हैं कि मुनि बन जाने पर भी भाव बिगड़ जावे तो सिद्धि को नहीं पाता है। इसकी कथा पुराणों से विस्तार से जानो। आगे वशिष्ठ मुनि का उदाहरण कहते हैं - अण्णं च वसिट्ठमुणी पत्तो दुक्खं णियाणदोसेण । इस ही तरह मुनि वशिष्ठ भी इस लोक में थानक नहीं। रे एक मात्र निदान से घूमा नहीं हो वह जहाँ ।।४६।।
SR No.008340
Book TitleAshtapahud
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size888 KB
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