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________________ समयसार : संक्षिप्त सार १६१ १७ समयसार : संक्षिप्त सार समयसार शास्त्र को जितना कठिन समझ लिया गया है, वस्तुतः वह उतना कठिन है नहीं। कुन्दकुन्दाचार्य का मूल समयसार सुगम शैली और सरल भाषा में लिखा गया है। सरलीकरण के लिए स्थान-स्थान पर दैनिक जीवन के सरलतम उदाहरणों का प्रयोग भी उसमें हुआ है। __ कठिन लगने का मूल कारण ग्रन्थ की कठिनता नहीं, बल्कि तत्सम्बन्धी अनादिकालीन अपरिचय और अनाभ्यास है। यदि हम इसका रुचिपूर्वक अभ्यास करें, नियमित स्वाध्याय द्वारा ग्रन्थ की विषयवस्तु से परिचित होने का प्रयत्न करें तो अल्पकाल में ही हमें यह ग्रन्थ अत्यन्त सरल प्रतीत होने लगेगा। इस ग्रन्थ के कठिन लगने का दूसरा कारण इस ग्रन्थ पर लिखी गई विस्तृत एवं गंभीरतम आचार्य अमृतचन्द्र की 'आत्मख्याति' एवं आचार्य जयसेन की 'तात्पर्यवृत्ति' टीकाएँ भी हो सकती हैं। यद्यपि इन दोनों टीकाओं ने आचार्य कुन्दकुन्द के हृदय के भावों को खोल कर रख दिया है, परन्तु ये टीकाएँ संस्कृत-निष्ठ और वृहदाकार होने से संस्कृत भाषा एवं सूक्ष्म तत्त्व से अनभिज्ञ पाठकों को कठिन लगना अस्वाभाविक नहीं है; परन्तु यदि चित्त स्थिर करके हिन्दी अनुवादों के माध्यम से स्वाध्याय करने का दृढ़ संकल्प कर लें तो यह काम कठिन नहीं हैं। किन्तु जिन्हें इस भवताप हारी एवं उत्तम सौख्यकारी-समयसार ग्रन्थ की महिमा आयेगी, वे ही ऐसा संकल्प करेंगे। देखो इस समयसार परमागम की स्वयं आचार्य कुन्दकुन्द के हृदय में कितनी महिमा थी? यह उन्हीं के शब्दों में द्रष्टव्य है। समयसार का उपसंहार करते हुए वे कहते हैं कि - "जो भव्य आत्मा इस समयाप्राभृत को पढ़कर और उसे अर्थ तत्त्व से जानकर अर्थभूत शुद्धात्मा में ठहरेगा, वह उत्तम सौख्य स्वरूप हो जायगा।'' आचार्य कुन्दकुन्द को अपने इस ग्रन्थ का नाम समयपाहुड' रखना ही अभीष्ट था। उन्होंने प्रथम गाथा के उत्तरार्द्ध में ग्रंथ बनाने के प्रतिज्ञा वाक्य में ग्रंथ का नामकरण करते हुए स्वयं कहा है - 'वोच्छामि समयपाहुडमिणं' अर्थात् में समयपाहुड' ग्रंथ को कहता हूँ। तथा अन्त में समापन करते हुए पुनः ४१५ गाथा में जो ‘समयपाहुडमिणं' कहकर 'समयपाहुड' नाम की पुष्टि की है। इससे स्पष्ट है कि आचार्यदेव ने तो इस ग्रन्थ का नामकरण 'समयपाहुड' ही किया था, परन्तु बाद में प्रवचनसार, नियमसार आदि ग्रन्थों के नामों के समान ‘समयपाहुड' भी 'समयसार' नाम से ही विख्यात हो गया। प्रस्तुत ग्रन्थ की १४१, १४४ एवं १४९वीं गाथा में 'समयसार' शब्द का प्रयोग भी मिलता है। इसी ग्रन्थ की 'आत्मख्याति' टीका के मंगलाचरण में भी 'नमः समयसाराय' की व्याख्या करते हुए कहा गया है - "समय अर्थात् जीव नामक पदार्थ, उसमें सार जो द्रव्यकर्म, भावकर्म व नोकर्म रहित शुद्ध आत्मा, उसे मेरा नमस्कार हो।” 'समयसार' नाम प्रचलन में आने का एक कारण यह भी हो सकता है; परन्तु 'समयपाहुड' व 'समयसार' दोनों नामों का अर्थ लगभग एक ही है। ___ आचार्य कुन्दकुन्द ने स्वयं 'समयो खलु णिम्मलो अप्पा' कहकर निर्मल आत्मा को 'समय' कहा है तथा जयसेनाचार्य ने 'प्राभृतं सारं सारः' कहकर प्राभृत का अर्थ आत्मा का शुद्ध स्वरूप किया है। समयसार का अर्थ भी शुद्धात्मा ही होता है। वस्तुतः आत्मा का शुद्धस्वरूप ही १. जो समयपाडमिणं पढिदूर्ण अथ्थतच्चदो णाहूं। अत्थे ठाही चेदा सो होही उत्तमं सोक्खं ।।४१५ ।। (81)
SR No.008338
Book TitleAise Kya Pap Kiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size489 KB
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