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________________ ऐसे क्या पाप किए ! उदाहरणार्थ हम भगवान महावीर स्वामी के पूर्वभवों को देखें। जब हम इस दृष्टि से सोचते हैं तो लगता है कि भगवान महावीर के पूर्वभव वस्तुतः हमारे आत्म-कल्याण के लिए अजस्र प्रेरणा के स्रोत हैं। भगवान महावीर की कहानी पुरुरबा नामक भील की पर्याय से प्रारंभ होती है, पुरुरबा भील जीवनभर हिंसक - हत्यारा रहा, किन्तु प्रसंग पाकर जब वह पत्नी की प्रेरणा से गुफा में साधनारत मुनिराज की हत्या के महापाप से बच गया, तो उसका हृदय अपने पूर्व में किए दुष्कृत्यों के कारण आत्म-ग्लानि से भर उठा और पश्चाताप की ज्वाला में पापों को भस्म करके आजीवन हिंसा के त्याग के फलस्वरूप सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ। इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि यदि अबतक हमारा जीवन पापमय भी रहा हो, तथापि शेष भावी जीवन को हम पवित्र बनाकर आत्मकल्याण कर सकते हैं। १५८ इसीतरह मारीचि के भव में महावीर के जीव ने जीवनभर जिनवाणी का विरोध किया, ३६३ मिथ्यामतों का प्रचार किया; तथापि धर्मबुद्धि से मन्दकषायपूर्वक किए गए कार्यों के फलस्वरूप समतापूर्वक देह त्यागने के कारण वह ब्रह्म स्वर्ग में देव हुआ । यहाँ इतना विशेष जानना चाहिए कि मिथ्यात्व दशा में बहुत काल तक मंदकषाय नहीं रह सकती। यही कारण है कि मारीचि का जीव अपने १३ भव मनुष्य व देवगति में बिताकर अन्ततोगत्वा जड़वत् होकर ऐकेन्द्रिय रूप स्थावर पर्यायों में एवं दोइन्द्रियादि कीस पर्यायों में चला गया और वहाँ असंख्य भव धारण करना पड़े । एक ओर मंदकषाय का फल स्वर्ग बताया तो वहीं दूसरी ओर मिथ्यात्व के महापाप का फलस व स्थावर योनियों में भी जाना पड़ा । एतदर्थ सबसे पहले मिथ्यात्व महापाप ही त्यागने योग्य है । फिर वह काललब्धि के बल से पुनः ब्राह्मण कुल में जन्मा, वहाँ से चौथा स्वर्ग, फिर विश्वनंदी राजकुमार, त्रिपृष्ठ नारायण एवं सातवें नरक (80) भगवान महावीर के विश्वव्यापी संदेश १५९ के नारकी के भवों के बाद, महावीर से पूर्व दसवें भव में सिंह पर्याय में उत्पन्न हुआ । भगवान महावीर ने आत्मा से परमात्मा बनने की प्रक्रिया इसी पर्याय में प्रारम्भ की थी। धन्य है वह पशु जिसने अपनी इस पामर पर्याय में उत्पन्न होकर भी आत्मा को जाना / पहचाना और मोक्षमार्ग की प्रथम सीढ़ी पर आरूढ़ हो गया। इसप्रकार भगवान महावीर ने आत्मा से परमात्मा बनने की प्रक्रिया इसी पर्याय में प्रारंभ की थी। उपर्युक्त कथन से हम यह सबक सीख सकते हैं कि जब भील भगवान बन सकता है, अर्थात् मिथ्यादृष्टि बहिरात्मा पापी जीव परमात्मा बन सकता है। शेर की पर्याय में सन्मति आ सकती है तो क्या हम मूँछ वाले समझदार कहलाने वाले मानव परमात्मा बनने का बीज भी नहीं बो सकते, क्यों नहीं बो सकते हैं? अवश्य बो सकते हैं। तो आइये, हम सब संकल्प करें कि इस शेष जीवन को यों ही मोहमाया और विषय कषायों में नहीं खोयेंगे। तथा जिनवाणी के अध्ययनमनन और चिन्तन द्वारा तत्त्वाभ्यास करके परमात्मा की उपासना और आत्मा की साधना करके शीघ्र ही परमात्मपद प्राप्त करने का प्रयत्न करें। हम भगवान की आराधना करते समय इस बात को न भूलें कि हममें व भगवान में कोई मौलिक भेद नहीं है, केवल भूत व वर्तमान का ही अन्तर है। अतः भगवान के सामने यह संकल्प करें कि हे महावीर ! जो आप का वर्तमान है वह नि:संदेह हमारा भविष्य होगा। होगा, होगा और होगा ।
SR No.008338
Book TitleAise Kya Pap Kiye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2006
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size489 KB
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