SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार 30 यथा च वारिधेवृद्धिहानिपर्यायेणानुभूयमानतायामनियतत्वं भूतार्थमपि नित्यव्यवस्थितं वारिधिस्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थम्, तथात्मनो वृद्धिहानिपर्यायेणानुभूयमानतायामनियतत्वं भूतार्थमपि नित्यव्यवस्थितमात्मस्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थम्। यथा च काञ्चनस्य स्निग्धपीतगुरुत्वादिपर्यायेणानुभूयमानतायां विशेषत्वं भूतार्थमपि प्रत्यस्तमितसमस्तविशेषं काञ्चनस्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थम् , तथात्मनो ज्ञानदर्शनादिपर्यायेणानुभूयमानतायां विशेषत्वं भूतार्थमपि प्रत्यस्तमितसमस्त-विशेषमात्मस्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थम्। यथा चापां सप्तार्चिःप्रत्ययौष्ण्यसमाहितत्वपर्यायेणानुभूयमानतायां संयुक्तत्वं भूतार्थमप्येकान्ततःशीतमप्स्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थम्, तथात्मन: कर्मप्रत्यय-मोहसमाहितत्वपर्यायेणानुभूयमानतायां संयुक्तत्वं भूतार्थमप्येकान्ततः स्वयं बोधं जीवस्वभावमुपेत्यानुभूयमानतायामभूतार्थम्।। जैसे समुद्रका, वृद्धिहानिरूप अवस्थासे अनुभव करने पर अनियतता ( अनिश्चितता) भूतार्थ है-सत्यार्थ है, तथापि नित्य-स्थिर समुद्रस्वभावके समीप जाकर अनुभव करनेपर अनियतता अभूतार्थ है-असत्यार्थ है; इसीप्रकार आत्माका, वृद्धिहानिरूप पर्यायभेदोंसे अनुभव करनेपर अनियतता भूतार्थ है-सत्यार्थ है, तथापि नित्य-स्थिर (निश्चल) आत्मस्वभावके समीप जाकर अनुभव करनेपर अनियतता अभूतार्थ है-असत्यार्थ है। ___ जैसे सोनेका, चीकनापन, पीलापन , भारीपन इत्यादि गुणरूप भेदोंसे अनुभव करनेपर विशेषता भूतार्थ है-सत्यार्थ है, तथापि जिसमें सर्व विशेष विलय होगये हैं ऐसे सुवर्णस्वभावके समीप जाकर अनुभव करनेपर विशेषता अभूतार्थ है-असत्यार्थ है; इसीप्रकार आत्माका, ज्ञान, दर्शन आदि गुणरूप भेदोंसे अनुभव करनेपर विशेषता भूतार्थ है-सत्यार्थ है, तथापि जिसमें सर्व विशेष विलय होगये हैं ऐसे आत्मस्वभावके समीप जाकर अनुभव करनेपर विशेषता अभूतार्थ है-असत्यार्थ है। जैसे जलका, अग्नि जिसका निमित्त है ऐसी उष्णताके साथ संयुक्ततारूपतप्ततारूप-अवस्थासे अनुभव करनेपर (जलका) उष्णतारूप संयुक्तता भूतार्थ हैसत्यार्थ है, तथापि एकांत शीतलतारूप जलस्वभावके समीप जाकर अनुभव करनेपर ( उष्णता के साथ) संयुक्तता अभूतार्थ है-असत्यार्थ है; इसीप्रकार आत्माका, कर्म जिसका निमित्त है ऐसे मोहके साथ संयुक्ततारूप अवस्थासे अनुभव करनेपर संयुक्तता भूतार्थ है-सत्यार्थ है, तथापि जो स्वयं एकांत बोधरूप (ज्ञानरूप) है ऐसे जीवस्वभावके समीप जाकर अनुभव करनेपर संयुक्तता अभूतार्थ है-असत्यार्थ है। भावार्थ:- आत्मा पाँच प्रकारसे अनेकरूप देखाई देता है: (१) अनादि कालसे कर्मपुद्गलके संबंधसे बँधा हुआ कर्मपुद्गलके स्पर्शवाला दिखाई देता है, (२) कर्मके निमित्तसे होनेवाली नर, नारक आदि पर्यायोंमें भिन्न भिन्न स्वरूपसे Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy