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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार ४४४ (शार्दूलविक्रीडित) त्यक्त्वाऽशुद्धिविधायि तत्किल परद्रव्यं समग्रं स्वयं स्वद्रव्ये रतिमेति यः स नियतं सर्वापराधच्युतः। बन्धध्वंसमुपेत्य नित्यमुदितः स्वज्योतिरच्छोच्छलचैतन्यामृतपूरपूर्णमहिमा शुद्धो भवन्मुच्यते।। १९१ ।। [ अतः स्वरसनिर्भरे स्वभावे नियमितः भवन् मुनिः] इसलिये निज रससे परिपूर्ण स्वभावमें निश्चल होनेवाला मुनि [ परमशुद्धतां व्रजति ] परम शुद्धताको प्राप्त होता है [ वा ] अथवा [ अचिरात् मुच्यते ] शीघ्र-अल्प कालमें [ कर्मबंधथी] छूट जाता है। भावार्थ:-प्रमाद तो कषायके गौरवसे होता है इसलिये प्रमादीको शुद्ध भाव नहीं होता। जो मुनि उद्यमपूर्वक स्वभावमें प्रवृत्त होता है वह शुद्ध होकर मोक्षको प्राप्त करता है। १९०। अब , मुक्त होनेका अनक्रुम-दर्शक काव्य कहते हैं: श्लोकार्थ:- [ यः किल अशुद्धिविधायि परद्रव्यं तत् समग्रं त्यक्त्वा ] जो पुरुष वास्तवमें अशुद्धता करनेवाले समस्त परद्रव्य को छोड़कर [ स्वयं स्वद्रव्ये रतिम् एति] स्वयं स्वद्रव्यमें लीन होता है, [ सः] वह पुरुष [नियतम् ] नियमसे [ सर्व-अपराधच्युतः ] सर्व अपराधोंसे रहित होता हुआ, [ बन्ध-ध्वंसम् उपेत्य नित्यम् उदितः ] बंधके नाशको प्राप्त होकर नित्य-उदित (सदा प्रकाशमान) होता हुआ , [ स्व-ज्योति:अच्छ-उच्छलत्-चैतन्य-अमृत-पूर-पूर्ण-महिमा] अपनी ज्योतिसे (आत्म स्वरूपके प्रकाशसे) निर्मलतया उछलता हुआ जो चैतन्यरूपी अमृतके प्रवाह द्वारा जिसकी पूर्ण महिमा है ऐसा [ शुद्धः भवन् ] शुद्ध होता हुआ , [ मुच्यते ] कर्मोंसे मुक्त होता है। भावार्थ:-जो पुरुष, पहले समस्त परद्रव्यका त्याग करके निज द्रव्यमें (आत्मस्वरूपमें) लीन होता है, वह पुरुष समस्त रागादिक अपराधोंसे रहित होकर आगामी बंधका नाश करता है और नित्य उदयरूप केवलज्ञानको प्राप्त करके, शुद्ध होकर, समस्त कर्मोंका नाश करके, मोक्षको प्राप्त करता है। यह मोक्ष होने का अनुक्रम है । १९१। ___ अब मोक्ष अधिकार पूर्ण करते हुए उसके अंतमंगलरूप पूर्ण ज्ञानकी महिमाका ( सर्वथा शुद्ध हुए आत्मद्रव्यकी महिमाका) कलशरूप काव्य कहते हैं: Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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