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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates मोक्ष अधिकार ४३९ ननु किमनेन शुद्धात्मोपासनप्रयासेन ? यतः प्रतिक्रमणादिनैव निरपराधो भवत्यात्मा; सापराधस्याप्रतिक्रमणादेस्तदनपोहकत्वेन विषकुम्भत्वे सति प्रतिक्रमणा देस्तदपोहकत्वेनामृतकुम्भत्वात्। उक्तं च व्यवहाराचारसूत्रे - अप्पडिकमणमप्पडिसरणं अप्पडिहारो अधारणा चेव । अणियत्ती य अणिंदागरहासोही य विसकुंभो ।। १।। परिकमणं पडिसरणं परिहारो धारणा णियत्ती य। णिंदा गरहा सोही अट्ठविहो अमयकुंभो दु ।। २ ।। जो सापराध आत्मा है वह तो [ नियतम् ] नियमसे [ स्वम् अशुद्धं भजन्] अपने को अशुद्ध सेवन करता हुआ [ सापराध: ] सापराध है; [ निरपराध: ] निरपराध आत्मा तो [ साधु ] भली भाँति [ शुद्धात्मसेवी भवति ] शुद्ध आत्मा का सेवन करने वाला होता है। १८७ । (यहाँ व्यवहारनयावलंबी अर्थात् व्यवहारनयको अवलंबन करनेवाला तर्क करता है कि:-) “ शुद्ध आत्माकी उपासनाका प्रयास करनेका क्या काम है? क्योंकि प्रतिक्रमण आदिसे ही आत्मा निरपराध होता है; क्योंकि सापराधके, जो अप्रतिक्रमण आदि हैं वे, अपराधको दूर करनेवाले न होने से, विषकुंभ हैं, इसलिये जो प्रतिक्रमणादि हैं वे, अपराधको दूर करनेवाले होनेसे, अमृतकुंभ है। व्यवहारका कथन करने वाले आचारसूत्रमें भी कहा है कि :-- अप्पडिकमणमप्पडिसरणं अप्पडिहारो अधारणा चेव । अणियत्ती य अणिंदागरहासोही य विसकुम्भो ।। १ ।। पडिकमणं पडिसरणं परिहारो धारणा णियत्ती च । अर्थः-अप्रतिक्रमण, अप्रतिसरण, अपरिहार, अधारणा, अनिवृत्ति, अनिंदा, अगर्हा और अशुद्धि -‍ - यह (आठ प्रकारका ) विषकुंभ है। १ । णिंदा गरहा सोही अट्ठविहो अमयकुम्भो दु ।। २ ।। अत्रोच्यते 'प्रतिक्रमण, `प्रतिसरण, परिहार, धारणा, "निवृत्ति, निंदा, गर्हा और 'शुद्धि- - यह आठ प्रकारका अमृतकुंभ है। २। चित्तको स्थिर करना । १। प्रतिक्रमण = कृत दोषोंका निराकरण। २। प्रतिसरण = सम्यक्त्वादि गुणोमें प्रेरणा । ३ । परिहार = मिथ्यात्वादि दोषोंका निवारण | ४। धारणा = पंचनमस्कारादि मंत्र, प्रतिमा इत्यादि बाह्य द्रव्योंके आलंबन द्वारा = ५। निवृत्ति ६। निंदा = आत्मसाक्षीपूर्वक दोषोंको प्रगट करना । ७। गर्हा = गुरुसाक्षीसे दोषोंको प्रगट करना । ८। शुद्धि " = बाह्य विषयकषायादि इच्छामें प्रवर्तमान चित्तको हटा लेना । दोष होनेपर प्रायश्चित्त लेकर विशुद्धि करना। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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