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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कर्ता-कर्म अधिकार २२७ तरन्तमिवाखण्डप्रतिभासमयमनन्तं विज्ञानघनं परमात्मानं समयसारं विन्दन्नेवात्मा सम्यग्दृश्यते ज्ञायते च; ततः सम्यग्दर्शनं ज्ञानं च समयसार एव। ( शार्दूलविक्रीडित) आक्रामन्नविकल्पभावमचलं पक्षैर्नयानां विना सारो यः समयस्य भाति निभृतैरास्वाद्यमानः स्वयम्। विज्ञानैकरसः स एष भगवान्पुण्यः पुराणः पुमान् ज्ञानं दर्शनमप्ययं किमथवा यत्किञ्चनैकोऽप्ययम्।। ९३ ।। तैरता हो ऐसे अखंड प्रतिभासमय, अनंत, विज्ञानघन, परमात्मारूप समयसारका जब आत्मा अनुभव करता है तब उसी समय आत्मा सम्यक्तया दिखाई देता है ( अर्थात् उसकी श्रद्धाकी जाती है) और ज्ञात होता है इसलिये समयसार ही सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान है। भावार्थ:-पहले आत्माका आगमज्ञानसे ज्ञानस्वरूप निश्चय करके फिर इंद्रियबुद्धिरूप मतिज्ञानको ज्ञानमात्रमें ही मिलाकर, तथा श्रुतज्ञानरूपी नयोंके विकल्पोंको मिटाकर श्रुतज्ञानको भी निर्विकल्प करके, एक अखंड प्रतिभासका अनुभव करना ही 'सम्यग्दर्शन' और 'सम्यग्ज्ञान' के नामको प्राप्त करता है; सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान कहीं अनुभवसे भिन्न नहीं है। अब इसी अर्थका कलशरूप काव्य कहते हैं: श्लोकार्थ:- [नयानां पक्षैः विना] नयोंके पक्षसे रहित, [अचलं अविकल्पभावम् ] अचल निर्विकल्पभावको [ आक्रामन् ] प्राप्त होता हुआ [ यः समयस्य सार: भाति] जो समयका (आत्माका) सार प्रकाशित करता है [ स: एष:] वह यह समयसार (शुद्ध आत्मा) - [ निभृतैः स्वयम् आस्वाद्यमान:] जो कि निभृत (निश्चल, आत्मलीन) पुरुषोंके द्वारा स्वयं आस्वाद्यमान है (-अनुभव में आता है) वह[विज्ञान-एक-रस: भगवान् ] विज्ञान ही जिसका एक रस है ऐसा भगवान है, [ पुण्यः पुराणः पुमान् ] पवित्र पुराण पुरुष है; चाहे [ ज्ञानं दर्शनम् अपि अयं ] ज्ञान कहो या दर्शन वह यही ( समयसार) ही है; [ अथवा किम् ] अधिक क्या कहें ? [ यत् किञ्चन अपि अयम् एकः] जो कुछ है सो यह एक ही है ( –मात्र भिन्न भिन्न नामसे कहा जाता है)। ९३। अब यह कहते हैं कि यह आत्मा ज्ञानसे च्युत हुआ था सो ज्ञानमें ही आ मिलता है: Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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