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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कर्ता-कर्म अधिकार २२५ समस्तनयपक्षपरिग्रहदूरीभूतत्वात्कञ्चनापि नयपक्षं परिगृह्णाति, स खलु निखिलविकल्पेभ्यः परतरः परमात्मा ज्ञानात्मा प्रत्यग्ज्योतिरात्मख्याति - रूपोऽनुभूतिमात्रः समयसारः। (स्वागता) चित्स्वभावभरभावितभावाभावभावपरमार्थतयैकम्। बन्धपद्धतिमपास्य समस्तां चेतये समयसारमपारम्।। ९२ ।। पक्षातिक्रान्त एव समयसार इत्यवतिष्ठते समस्त नयपक्षके ग्रहणसे दूर हुवे होनेसे, किसी भी नयपक्षको ग्रहण नहीं करता, वह (आत्मा) वास्तवमें समस्त विकल्पोंसे अति पर, परमात्मा, ज्ञानात्मा, प्रत्यग्ज्योति, आत्मख्यातिरूप अनुभूतिमात्र समयसार है। भावार्थ:-जैसे केवली भगवान सदा नयपक्षके स्वरूपके साक्षी (ज्ञाताद्रष्टा) है उसीप्रकार श्रुतज्ञानी भी जब समस्त नयपक्षोंसे रहित होकर शुद्ध चैतन्यमात्र भावका अनुभवन करते हैं तब वे नयपक्षके स्वरूपके ज्ञाता ही हैं, यदि एक नयका सर्वथा पक्ष ग्रहण किया जाये तो मिथ्यात्वके साथ मिला हुआ राग होता है; प्रयोजनवश एक नयको प्रधान करके उसका ग्रहण करे तो मिथ्यात्वके अतिरिक्त मात्र चारित्रमोहका राग रहता है; और जब नयपक्षको छोड़कर वस्तुस्वरूपको मात्र जानते ही हैं तब उस समय श्रुतज्ञानी भी केवलीकी भाँति वीतराग जैसे ही होते हैं ऐसा जानना। अब इस कलश में यह कहते हैं कि वह आत्मा ऐसा अनुभव करता है: श्लोकार्थ:- [ चित्स्वभाव-भर-भावित-भाव-अभाव-भाव-परमार्थतया एकम् ] चित्स्वभावके पुंज द्वारा ही अपने उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य किये जाते हैं, ऐसा जिसका परमार्थ स्वरूप है इसलिये जो एक है ऐसे [ अपारम् समयसारम् ] अपार समयसारको मैं, [ समस्तां बन्धपद्धतिम् ] समस्त बंधपद्धतिको [ अपास्य] दूर करके अर्थात् कर्मोदयसे होनेवाले सर्व भावोंको छोड़कर, [ चेतये ] अनुभव करता हूँ। भावार्थ:-निर्विकल्प अनुभव होनेपर, जिसके केवलज्ञानादि गुणोंका पार नहीं है ऐसे समयसाररूपी परमात्माका अनुभव ही वर्तता है। मैं अनुभव करता हूँ' ऐसा भी विकल्प नहीं होता-ऐसा जानना। ९२ । अब यह कहते हैं कि नियमसे यह सिद्ध है कि पक्षातिक्रांत ही समयसार है: Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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