SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१४ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार नयपक्षः। यः किल जीवे बद्धं कर्मेति यश्च जीवेऽबद्धं कर्मेति विकल्पः स द्वितयोऽपि हि य एवैनमतिक्रामति स एव सकलविकल्पातिक्रान्तः स्वयं निर्विकल्पैकविज्ञानघनस्वभावो भुत्वा साक्षात्समयसार : सम्भवति । तत्र यस्तावज्जीवे बद्धं कर्मेति विकल्पयति स जीवेऽबद्धं कर्मेति एकं पक्षमतिक्रामन्नपि न विकल्पमतिक्रामतिः यस्तु जीवेऽबद्धं कर्मेति विकल्पयति सोऽपि जीवे बद्धं कर्मेत्येकं पक्षमतिक्रामन्नपि न विकल्पमतिक्रामति; यः पुनर्जीवे बद्धमबद्धं च कर्मेति विकल्पयति स तु तं द्वितयमपि पक्षमनतिक्रामन् न विकल्पमतिक्रामति । ततो य एव समस्तनयपक्षमतिक्रामति स एव समस्तं विकल्पमतिक्रामति । य एव समस्तं विकल्पमतिक्रामति स एव समयसारं विन्दति । यद्येवं तर्हि को हि नाम नयपक्षसन्नयासभावनां न नाटयति ? टीका:-' जीवमें कर्म बद्ध है' ऐसा जो विकल्प तथा 'जीवमें कर्म अबद्ध है' ऐसा जो विकल्प वह दोनों नयपक्ष हैं। जो उस नयपक्षका अतिक्रम करता है (−उसे उल्लंघन कर देता है, छोड़ देता है), वही समस्त विकल्पोंका अतिक्रम करके स्वयं निर्विकल्प, एक विज्ञानघनस्वभावरूप होकर साक्षात् समयसार होता है। यहाँ (विशेष समझाया जाता है कि ) - जो जीवमें कर्म बद्ध है' ऐसा विकल्प करता है वह — जीवमें कर्म अबद्ध है' ऐसा एक पक्षका अतिक्रम करता हुआ भी विकल्पका अतिक्रम नहीं करता, और जो जीवमें कर्म अबद्ध है' ऐसा विकल्प करता है वह भी 'जीवमें कर्म बद्ध है' ऐसे एक पक्षका अतिक्रम करता हुआ भी विकल्पका अतिक्रम नहीं करता; और जो यह विकल्प करता है कि 'जीवमें कर्म बद्ध है और अबद्ध भी है', वह दोनों पक्षका अतिक्रम न करता हुआ, विकल्पका अतिक्रम नहीं करता। इसलिये जो समस्त नयपक्षका अतिक्रम करता है वहीं समस्त विकल्पका अतिक्रम करता है; जो समस्त विकल्पका अतिक्रम करता है वही समयसारको प्राप्त करता है - उसका अनुभव करता है। • भावार्थ:-जीव कर्मसे 'बँधा हुआ है' तथा ' नहीं बंधा हुआ है ' - यह दोनों नयपक्ष हैं। उनमेंसे किसीने बंधपक्ष ग्रहण किया, उसने विकल्प ही ग्रहण किया; किसीने अबंधपक्ष लिया, तो उसने भी विकल्प ही ग्रहण किया; और किसीने दोनों पक्ष लिये, तो उसने भी पक्षरूप विकल्पका ही ग्रहण किया । परंतु ऐसे विकल्पोंको छोड़कर जो किसी भी पक्षको ग्रहण नहीं करता वही शुद्ध पदार्थका स्वरूप जानकर उस-रूप समयसारको - शुद्धात्माको प्राप्त करता है। नयपक्षको ग्रहण करना राग है, इसलिये समस्त नयपक्षको छोड़नेसे वीतराग समयसार हुआ जाता है। अब, यदि ऐसा है तो नयपक्षके त्यागकी भावनाको वास्तवमें कौन नहीं Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy