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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कर्ता-कर्म अधिकार ज्ञानावरणपदपरिवर्तनेन एवमेव च द्दर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुर्नामगोत्रान्तरायसूत्रैः कर्मसूत्रस्य सप्तभि: मोहरागद्वेषक्रोधमानमायालोभ नोकर्ममनोवचनकायश्रोत्रचक्षुर्घाणरसनस्पर्श-नसूत्राणि षोडश व्याख्येयानि। अनया दिशान्यान्यप्यूह्यानि । अज्ञानी चापि परभावस्य न कर्ता स्यात् जं भावं सुहमसुहं करेदि आदा स तस्स खलु कत्ता। तं तस्स होदि कम्मं सो तस्स दु वेदगो अप्पा ।। १०२ ।। यं भावं शुभमशुभं करोत्यात्मा स तस्य खलु कर्ता । तत्तस्य भवति कर्म स तस्य तु वेदक आत्मा ।। १०२ ।। खल्वनादेरज्ञानात्परात्मनोरेकत्वाध्यासेन इंह ९८१ विभागेनोपन्यासा सह पुद्गलकर्मविपाकदशाभ्यां मन्दतीव्रस्वादाभ्यामचलितविज्ञानघनैकस्वादस्याप्यात्मनः स्वादं भिन्दानः शुभमशुभं वा यो यं भावमज्ञानरूपमात्मा करोति और इसीप्रकार ‘ज्ञानावरण' पद पलट कर कर्म - सूत्रका ( कर्मकी गाथाका ) विभाग करके कथन करनेसे दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अंतरायके सात सूत्र तथा उनके साथ मोह, राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ, नोकर्म, मन, वचन, काय, श्रोत्र, चक्षु, ध्राण, रसन और स्पर्शनके सोलह सूत्र व्याख्यानरूप करना; और इसप्रकार इस उपदेशसे अन्य भी विचार लेना । अब यह कहते हैं कि अज्ञानी भी परद्रव्यके भावका कर्ता नहीं है: जो भाव जीव करे शुभाशुभ उसहि का कर्ता बने । उसका बने वो कर्म, आत्मा उस हि का वेदक बने ।। १०२ ।। गाथार्थ:- [ आत्मा ] आत्मा [ यं ] जिस [ शुभम् अशुभम् ] शुभ या अशुभ [ भावं ] ( अपने) भावको [ करोति ] करता है [ तस्य ] उस भावका [सः ] वह [ खलु ] वास्तवमें [ कर्ता ] कर्ता होता है, [ तत् ] वह (भाव) [ तस्य ] उसका [ कर्म ] कर्म [भवति ] होता है [ सः आत्मा तु ] और वह आत्मा [ तस्य ] उसका ( उस भावरूप कर्मका ] [ वेदक: ] भोक्ता होता है। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com टीका:-अपना अचलित विज्ञानघनरूप एक स्वाद होनेपर भी इस लोकमें जो यह आत्मा अनादिकालीन अज्ञानके कारण परके और अपने एकत्वके अध्याससे मंद और तीव्र स्वादयुक्त पुद्गलकर्मके विपाककी दो दशाओंके द्वारा अपने (विज्ञानघनरूप ) स्वादको भेदता हुआ अज्ञानरूप शुभ या अशुभ भावको करता है,
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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