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________________ ३६ ] Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates [ मोक्षमार्गप्रकाशक इस प्रकार ज्ञान-दर्शन का सद्भाव ज्ञानावरण, दर्शनावरण के क्षयोपशम के अनुसार होता है। जब क्षयोपशम थोड़ा होता है तब ज्ञान - दर्शन की शक्ति थोड़ी होती है; जब बहुत होता है तब बहुत होती है। तथा क्षयोपशम से शक्ति तो ऐसी बनी रहती है, परन्तु परिणमन द्वारा एक जीव को एक काल में एक विषय का ही देखना और जानना होता है। इस परिणमन ही का नाम उपयोग है। वहाँ एक जीव को एक काल में या तो ज्ञानोपयोग होता है या दर्शनोपयोग होता है। तथा एक उपयोग के भी एक भेद की प्रवृत्ति होती है। जैसे मतिज्ञान हो तब अन्य ज्ञान नहीं होता । तथा एक भेद में भी एक विषय में ही प्रवृत्ति होती है। जैसे स्पर्श को जानता है तब रसादिक को नहीं जानता । तथा एक विषय में उसे किसी एक अङ्ग में ही प्रवृत्ति होती है । जैसे उष्णस्पर्श को जानता है तब रूक्षादिक को नहीं जानता । - इस प्रकार एक जीव को एक काल में एक ज्ञेय अथवा दृश्य ज्ञान अथवा दर्शन का परिणमन जानना। ऐसा ही दिखाई देता है। जब सुनने उपयोग लगा हो तब नेत्र के समीप स्थित पदार्थ भी नहीं दीखता । इस ही प्रकार अन्य प्रवृत्ति देखी जाती है। तथा परिणमन में शीघ्रता बहुत है। उससे किसी कालमें ऐसा माना लेते हैं कि युगपत् भी अनेक विषयों का जानना तथा देखना होता है, किन्तु युगपत् होता नहीं है, क्रम से ही होता है, संस्कारबल से उनका साधन रहता है । जैसे कौए के नेत्र के दो गोलक हैं, पुतली एक है वह फिरती शीघ्र है, उससे दोनों गोलकों का साधन करती है; उसी प्रकार इस जीव के द्वार तो अनेक हैं और उपयोग एक है, वह फिरता शीघ्र है, उससे सर्व द्वारों का साधन रहता है। — यहाँ प्रश्न है कि एक काल में एक विषय का जानना अथवा देखना होता है तो इतना ही क्षयोपशम हुआ कहो, बहुत क्यों कहते हो ? और तुम कहते हो कि क्षयोपशम से शक्ति होती है तो शक्ति तो आत्मा में केवलज्ञान - दर्शन की भी पायी जाती है। समाधान :- जैसे किसी पुरुष के बहुत ग्रामों में गमन करने की शक्ति है। तथा उसे किसी ने रोका और यह कहा कि पाँच ग्रामों में जाओ, परन्तु एक दिन में एक ग्राम को जाओ। वहाँ उस पुरुष के बहुत ग्राम जाने की शक्ति तो द्रव्य अपेक्षा पायी जाती है; अन्य काल में सामर्थ्य हो, परन्तु वर्त्तमान सामर्थ्यरूप नहीं है क्योंकि वर्त्तमान में पाँच ग्रामों से अधिक ग्रामों में गमन नहीं कर सकता । तथा पाँच ग्रामों में जाने की पर्याय- अपेक्षा वर्त्तमान सामर्थ्यरूप शक्ति है, क्योंकि उसमें गमन कर सकता है; तथा व्यक्तता एक दिनमें एक ग्राम को गमन करने की ही पायी जाती है। उसी प्रकार इस जीवके सर्व को देखने-जानने की शक्ति है। तथा उसे कर्मने रोका Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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