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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates (२) पंचपरमेष्ठीका सही स्वरूप ( पृष्ठ २ व २२१) (३) सप्त तत्त्वों सम्बन्धी भूल (पृष्ठ २२५ ) निश्चय-व्यवहार ( पृष्ठ २४८) । जैन शास्त्रोंका अर्थ समझने की पद्धति (पृष्ठ २५१) चारों अनुयोगोंका प्रयोजन, व्याख्यानका विधान , कथन पद्धति, दोष कल्पनाका निराकरण आदि (पृष्ठ २६८) सैद्धान्तिक दृष्टिसे तो उन्होंने नया प्रमेय उपस्थित किया ही है, साथ ही तत्कालीन समाज एवं उसके धार्मिक क्रिया-कलाप भी उनकी दृष्टि से ओझल नहीं रह सके। शास्त्राध्ययन एवं आत्मानुभवनके अतिरिक्त उनका लोक-निरिक्षण भी अत्यन्त सूक्ष्म रहा है। नमूनेके तौर पर लगभग २१० वर्ष पुराना उनका यह चित्रण आज भी सर्वत्र देखा जा सकता “वहाँ कितने ही जीव कुलप्रवृत्ति से अथवा देखा-देखी लोभादिके अभिप्रायसे धर्म साधते हैं, उनके तो धर्मदृष्टि नहीं है। यदि भक्ति करते हैं तो चित्ततो कहीं है, दृष्टि घुमती रहती है और मुखमें पाठादि करते हैं व नमस्कारादि करते हैं; परन्तु यह ठीक नहीं है। मैं कौन हूँ, किसकी स्तुति करता हूँ, किस प्रयोजन के अर्थ स्तुति करते हूँ, पाठमें क्या अर्थ है, सो कुछ पता नहीं है। तथा कदाचित् कुदेवादिककी भी सेवा करने लग जाता है; वहाँ सुदेव-गुरुशास्त्रादि व कुदेव-गुरु-शास्त्रादिकी विशेष पहिचान नहीं है। तथा यदि दान देता है तो पात्र-अपात्रके विचार रहित जैसे अपनी प्रशंसा हो वैसे दान देता है। तथा तप करता है तो भूखा रह कर महंत पना हो वह कार्य करता है; परिणामोंकि पहिचान नहीं है। तथा व्रतादि धारण करता है तो वहाँ बाह्य क्रिया पर दृष्टि है; सो भी कोई सच्ची क्रिया करता है, कोई झूठी करता है; और जो अंतरंग रागादि भाव पाए जाते हैं उनका विचार ही नहीं है, तथा बाह्य में भी रागादिके पोषणके साधन करता है। तथा पूज्य-प्रभावनादि कार्य करता है तो वहाँ जिसप्रकार लोकमें बड़ाई हो, व विषय-कषायका पोषण हो उसप्रकार कार्य करता है। तथा बहत हिंसादिक उत्पन्न करता सो यह कार्य तो अपने तथा अन्य जीवोंके परिणाम सुधारनेके अर्थ कहे हैं। तथा वहाँ किंचित् हिंसादिक भी उत्पन्न होते है; परन्तु जिसमें थोड़ा अपराध और गुण अधिक हो Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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