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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates २९६ ] [ मोक्षमार्गप्रकाशक तथा एक ही भावकी कहीं तो उससे उत्कृष्ट भावकी अपेक्षा निन्दा की हो, और कहीं उससे हीन भावकी अपेक्षासे प्रशंसा की हो वहाँ विरुद्ध नहीं जानना । जैसे किसी शुभक्रियाकी जहाँ निन्दा की हो वहाँ तो उससे ऊँची शुभक्रिया व शुद्धभावकी अपेक्षा जानना, और जहाँ प्रशंसा की हो वहाँ उससे नीची क्रिया व अशुभक्रियाकी अपेक्षा जानना । इसीप्रकार अन्यत्र जानना । तथा इसीप्रकार किसी जीवकी ऊँचे जीवकी अपेक्षासे निन्दा की हो वहाँ सर्वथा निन्दा नहीं जानना, और किसीकी नीचे जीवकी अपेक्षासे प्रशंसा की हो सो सर्वथा प्रशंसा नहीं जानना; परन्तु यथासम्भव उसका गुण-दोष जान लेना । इसीप्रकार अन्य व्याख्यान जिस अपेक्षा सहित किये हों उस अपेक्षासे उनका अर्थ समझना । तथा शास्त्रमें एक ही शब्दका कहीं तो कोई अर्थ होता है, कहीं कोई अर्थ होता है; वहाँ प्रकरण पहिचानकर उसका सम्भावित अर्थ जानना । जैसे मोक्षमार्गमें सम्यग्दर्शन कहा, वहाँ दर्शन शब्द का अर्थ श्रद्धान है और उपयोगवर्णनमें दर्शन शब्दका अर्थ वस्तुका सामान्य स्वरूप ग्रहण मात्र है, तथा इन्द्रियवर्णनमें दर्शन शब्दका अर्थ नेत्र द्वारा देखना मात्र है। तथा जैसे सूक्ष्म और बादरका अर्थ - वस्तुओंके प्रमाणादिक कथनमें छोटे प्रमाणसहित हो उसका नाम सूक्ष्म, और बड़े प्रमाणसहित हो उसका नाम बादर ऐसा होता है। तथा पुद्गल स्कंधादिके कथनमें इन्द्रियगम्य न हो वह सूक्ष्म, और इन्द्रियगम्य हो वह बादर ऐसा अर्थ है। जीवादिकके कथनमें ऋद्धि आदिके निमित्त बिना स्वयमेव न रुके उसका नाम सूक्ष्म और रुके उसका नाम बादर ऐसा अर्थ है । वस्त्रादिकके कथन में महीन का नाम सूक्ष्म और मोटेका नाम बाद र ऐसा अर्थ है। - - तथा प्रत्यक्ष शब्दका अर्थ लोकव्यवहारमें तो इन्द्रिय द्वारा जानने का नाम प्रत्यक्ष है, प्रमाणभेदोंमें स्पष्ट प्रतिभासका नाम प्रत्यक्ष है, आत्मानुभवनादिमें अपनेमें अवस्था हो उसका नाम प्रत्यक्ष है। तथा जैसे – मिथ्यादृष्टि के अज्ञान कहा, वहाँ सर्वथा ज्ञान का अभाव नहीं जानना, सम्यग्ज्ञानके अभावसे अज्ञान कहा है। तथा जिस प्रकार उदीरणा शब्दका अर्थ जहाँ देवादिकके उदीरणा नहीं कही वहाँ तो अन्य निमित्तसे मरण हो उसका नाम उदीरणा है, और दस करणोंके कथनमें उदीरणाकरण देवायुके भी कहा है, वहाँ ऊपरके निषेकोंका द्रव्य उदयावली में दिया जाये उसका नाम उदीरणा । इसीप्रकार अन्यत्र यथासम्भव अर्थ जानना । तथा एक ही शब्द के पूर्व जोड़नेसे अनेक प्रकार अर्थ होते हैं व उसी शब्दके अनेक अर्थ हैं; वहाँ जैसा सम्भव हो वैसा अर्थ जानना । जैसे 'जीते' उसका नाम 'जिन' है; Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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